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यह चित्र गतक कैसा क्या है ? इसकी उचित समीक्षा तो दर्शक और पाठक ही न्याय पूर्ण ढग से कर सकते हैं । मै स्वय क्यो इसकी प्रशसा करके अपने मुँह मियां मिठू बनने का आरोप सिर पर लं । अस्तु
मेरे जीवन-दीप का निर्वाण भी न जाने किस क्षण हो जाये इस आशका ने ही मुझे निरन्तर ही शुभोपयोग मे प्रवृत्त रखा
भगवान् महावीर श्री की २५०० सौवी वर्ष तिथि पर यह चित्र-शतक उनकी पावन स्मृति को युग युगान्त तक अमर रखे इस महान पवित्र भावना के साथ उन्ही के पावन चरणो मे यह ग्रन्थ समर्पित करते हुये पुलकित हो रहा हूँ। 'इत्यलम्'
खुरई (जिला सागर) म०प्र० दिनाक ६-८-१९७४
विनयावनतकमल कुमार जैन शास्त्री,
"कुमुद”