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: ५. होता, परन्तु इस मुखर युग मे मौन का मूल्य ही क्या? इसलिये चिनो को वाणी देने के लिये हमने तत्सबधी सक्षिप्त पद्य रचना द्वारा भी उन्हे अलकृत किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'महावीर श्री चित्र-शतक' मे दो खण्ड है । एक तो चित्र काव्य खण्ड और दूसरा पद्य काव्य खण्ड । इतने मे ही उनके समूचे जीवन दर्शन के गूंथने का प्रयास किया गया है।
यह ग्रन्थ चित्र सकलन अथवा अलवम मात्र नहीं है बल्कि पुराण एव इतिहास की कोटि मे रखा जाने योग्य एक स्मृति ग्रन्थ है । पद्य क्या हैं ? जैन सिद्धान्त के सूत्र हैं जिनमे घटना क्रम और कथानकों के सुरभित समन पिरोये गये है।
ग्रन्य के पन्ने पलटते हुये ऐसा प्रतीत होता है जैसे छाया चित्र पटल पर महावीर श्री की फिल्म रील क्रम बद्ध रूप से चल रही हो । सक्षिप्त और ललित पद्य सगीत का कार्य करते हुये कथानक को रोचक बनाते जाते है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का निर्माण कार्य कितना परिश्रम साध्य, व्यय साध्य और समय साध्य रहा इसकी कटुक अनुभूति सिवाय भुक्तभोगी सम्पादक के और किसी को नही हो सकती। अनुभूति तो अवश्य कटुक थी परन्तु उसका परिपाक अन्तरात्मा मे अपूर्व माधुर्य रस घोल रहा था। उसी माधुर्य ने केवल लक्ष्य विन्दु पर ही दृष्टि रखी । कटकाकीर्ण मार्ग पर नही।
एक वर्ष पूर्व इस चिन्न शतक की कल्पना भी मेरे मस्तिष्क मे नही थी। वह तो दिल्ली निवासी श्री पन्नालाल जी जैन आचिटेक्ट महोदय का सवल निमित्त था जो निरन्तर प्रेरणा की इकाई वनकर इस पुनीत निर्माण कार्य को सम्पन्न कराने मे सदैव स्मरणीय रहेगा। उनके दैनिक पत्र व्यवहारो ने मेरी शिथिलताओ के विरुद्ध अकुश का बृहत्तर काम किया। वस्तुत. इन्ही महावत श्री के निर्देशन मे 'महावीर श्री चित्र शतक' का