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समवशरणादिक लौकिक विभूतियो से सम्पन्न एव अनन्त चतुष्टयादिक अर्नन अलौकिक गुणो से मंडित तीर्थकर नाम कर्म की सर्वोत्कृष्ट पुण्यतम प्रकृति की यह साकार मानवता जिन अरिहत विशेषो ने अपने अपूर्व पुरुषार्थ से अर्जित की हैवे युग पुरुष कहलाते हैं । जो यथावस्थित चराचर लोक के मात्र वीतराग जाता दृष्टा होकर आत्मानुशासित जैन - शासन की अनादि निधन प्रवहमान युगान्तरकारी धोव्यधुरी के रूप मे सदा-सर्वदा वदनीय रहते है ।
तीर्थङ्कर भगवान वर्द्धमान महावीर इस कल्प- काल के एक ऐसे ही युग पुरुष महामानव थे जिनका तीर्थङ्करीय शासन चक्र अव भी भरत क्षेत्र मे अढाई हजार वर्ष से निरन्तर प्रवर्तमान है । इस पचम कलिकाल के जीवो के लिये उनकी निश्चय व्यवहार परक मुख्य गौण अनेकान्त वाणी जितनी आवश्यक और हितावह आज है, उतनी कदाचित् ही कभी रही है । महाश्रमण महावीर स्वामी आज भले ही अरिहत अवस्था मे साकार रूप से होकर हमारे नयन पथगामी आदर्श न हो ( निराकार - निरजन सिद्धत्व अवस्था मे विराजमान हो ) तो भी उनका वाड्मय शरीर परम पूज्य गणधराचार्यो के सूत्र ग्रन्थो मे ग्रथित किया हुआ अव भी सुरक्षित है । आज आवश्यकता है उनके भले प्रकार पारायण की ।
सर्वज्ञ भगवान महावीर की वह ओ कारमयी दिव्य ध्वनि उन पूज्यपाद गणधरो ने यद्यपि द्वादशाङ्ग श्रुत में गूंथी थी परन्तु काल-प्रवाह ने उसकी व्युच्छिती करके हमे विविध शास्त्राभासो के गहन कानन मे अकेला छोड दिया है । फिर भी आचार्य कुद-कुदादि की असीम अनुकम्पा से वीर-शासन के अक्षुण्ण मूल-सूत्न' हमारे हाथ मे हैं और प्रशस्त मोक्ष मार्ग हमे अभी भी सुस्पष्ट दिखाई दे रहा है ।
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