Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

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Page 15
________________ २] * महावीर जीवन प्रभा* का गर्व नष्ट करदेती थी, जिनका परोपकार नदी के अस्खलित प्रवाह के समान प्रवाहित होकर सृष्टि के लोगों का सन्ताप अपहरण करदेती थी, जिनका प्रभाव सुर-सुरेन्द्र-नरेन्द्र-नर और पशुओं के जीवन को भारी प्रभावित करता था, वे सब किङ्करवत् होजाते थे और उनकी आध्यात्मिक शैली की योगीन्द्रो, मुनीन्द्रो आदि तमाम उपासना करते थे और करते हैं. हम एक ऐसे ढंग से इस जीवनप्रभा का निर्माण करने का प्रयत्न करते हैं जोन केवल ऐतिहासिक या सैद्धान्तिक या व्यावहारिक दृष्टि से ही सम्पन्न हो, अथवा न मात्र किंवदन्तियों का ही खजाना हो, परन्तु आवश्यकीय समस्त उपयुक्त सामग्रियों का इसमें संचय किया जायना; इसमें यह भी ध्यान रक्खा जायगा कि मताग्रह के कारण, प्रद्वेष को सफल बनाने के हेतु जो जो उक्तियाँ होंगी तथा अघटित घटनाएं होंगी, उन सब से परे रहने का प्रयत्न किया जायगा- हमारा यह उद्देश्य है कि भगवान महावीर के समाचरित और औपदेशिक नौतिक सिद्धान्त जनता के सम्मुख रक्खे जाँय, उन की उदघोषणाओं को संसार के आत्माओं तक पहुँचाई जाय; जिन से वे अपने जीवन को पवित्र बनाकर आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त होकर मोक्षपद (Salvation) प्राप्त करने के योग्य बनें. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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