Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 9
________________ महाकवि पूधरदास : भूल धूल कहिं मूल न सूझत, समरस जल भर लायो । 'भूधर' को निकसे अब बाहिर, जिन निरचू घर पायो । अब मेरे समकित सावन आयो ॥ 3 ॥ अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी श्रावण मास आ गया है । धार्मिक कुरीति मिथ्यामतिरूपी ग्रीष्म ऋतु बीत गई है और सहज सुख-शान्तिदायक सम्यक्त्व सुरीतिरूप बर्षा ऋतु आ गई है। इसप्रकार अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी श्रावण मास आ गया है। ___ आत्मा के अनुभवरूप बिजली चमकने लगी है, आत्म-स्मृतिरूप मेघों की घनीभूत घटा छा गई है, निर्मल विवेक रूपी पपीहा बोलने लगा है और सुमति रूपी सुहागिन ( सौभाग्यवती नारी , प्रसन्न हो गई है; इसप्रकार अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी श्रावणमास आ गया है। जिसप्रकार मेघों की गर्जना सुनकर मयूर प्रमुदित हो उठते हैं, नाचने लगते हैं; कार सद्गुरु की गर्जन सुनकर मेरा मन रूपी मोर प्रसन्न हो उठा है, आनन्दित हो उठा है और उसमें साधकभाव के बहुत से अंकुर फूट पड़े हैं तथा यत्र-तत्र सर्वत्र सवाया हर्ष छा गया है। इसप्रकार अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी श्रावण मास आ गया है। प्रयोजनभूत तत्त्वों सम्बन्धी भूलरूपी धूल मूल से समाप्त हो गई है, अत: कहीं भी दिखाई नहीं देती तथा समतारूपी जल सर्वत्र ही भर गया है; जीवन में समता आ गई है। कविवर भूधरदासजी कहते हैं कि जब मैंने इसप्रकार का निरचू घर प्राप्त कर लिया है तो अब मैं इस निरचू घर से बाहर क्यों निकल? अब तो मैं सदा इस निरच घर में ही रहूँगा; क्योंकि अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी सावन आ गया है। भयंकर वर्षा होने पर भी जिस घर में पानी अन्दर नहीं आता ; उसे निरचू घर कहते हैं। गाँवों में कच्चे मकान होते हैं। वर्षा होने पर उनमें पानी चूने लगता है, टपकने लगता है ; उससे उन्हें बहुत परेशानी होती है, सभी सामान खराब हो जाता है। अत: उनके मन में ऐसे घर की कामना सदा ही

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