Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana Author(s): Narendra Jain Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer View full book textPage 7
________________ wi महाकवि भूधरदास : जबतक तेरे इस शरीर को रोगों ने नहीं घेरा है, जबतक पराधीन करने वाला बुढ़ापा नजदीक नहीं आया है, जबतक यमराज रूपी शत्रु ने नगाड़ा नहीं बजाया है, जबतक पत्नी कहना मानती है और जबतक बुद्धि विकृत नहीं हुई है; तबतक हे मित्र ! अपने आत्मकल्याण के कार्य को कर ले, जीवन को संभाल ले: क्योंकि जल पुरुषार्थ तक जाएगा, तब तू क्या करेगा, क्या कर सकेगा? अरे भाई ! आग के लग जाने पर जब झोपड़ी जलने लग जाए; तब कुए के खोदने से क्या लाभ होने वाला है ? इस बात पर जरा गम्भीरता से विचार करो। जैनशतक के उक्त छन्द में समय रहते आत्मकल्याण कर लेने की पावन प्रेरणा तो दी ही गई है। साथ में अन्तिम पंक्ति में 'आग लग जाने पर कुएं के खोदने से क्या लाभ?'- इस लोकोक्ति का भी प्रसंगानुसार सुन्दरतम प्रयोग किया गया है। कवि को इस बात का बहुत ही दुःख है कि दुनियादारी में उलझे जगत जन जगत की विचित्रता, क्षणभंगुरता और दुःखमयता देखकर भी चेतते क्यों नहीं हैं ? उन्हें इस महादुर्लभ मनुष्य भव की महिमा क्यों नहीं आती ? वे लिखते हैं - काहू घर पुत्र जायौ, काहू के वियोग आयौ; काहू राग-रंग काहू रोआ-रोई करी है। जहाँ भान ऊगत उछाह गीत गान देखे सांझ समै ताही थान हाय-हाय परी है ।। ऐसी जग रीति को न देखि भयभीत होय; हा-हा नर मूढ तेरी मति कौनै हरी है। मानुष जनम पाय सोवत विहाय जाय; खोवत करोरन की एक-एक घरी है।' एक ही समय में किसी के घर पुत्रोत्पत्ति की खुशी का प्रसंग है तो किसी घर पुत्रादि के वियोग का. दुःखद प्रसंग बन रहा है ; कोई राग-रंग में मस्त है तो किसी के घर रोना-धोना हो रहा है। 1. जैनशतक, छन्द 21Page Navigation
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