Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 5
________________ vi) महाकवि भूघरदास : का व्याख्यान करै, और सौ दोय सै साधर्मी भाई ता सहित वासू मिलि फेरि जैपुर पाछा आए। पीछे सेखावाटी विषै सिंघांणां नय तहां टोडरमल्लजी एक दिल्ली का बड़ा साहूकार साधर्मी ताकै समीप कर्म कार्य के अर्थि वहां रहै, तहां हम गए। अर टोडरमल्लजी सूं मिले, नाना प्रकार के प्रश्न कीए, ताका उत्तर एक गोमट्टसार नामा ग्रन्थ की साखि सं देते भए। ता ग्रन्थ की महिमा हम पूर्वं सुणी थी, तातूं विशेष देखी । अर टोडरमल्लजी का ज्ञान की महिमा अद्भुत देखी।" साधर्मी भाई रायमलजी के उक्त कथन से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि भूधरदासजी पण्डित टोडरमलजी के समकालीन थे और उनके समान प्रसिद्धि प्राप्त भी थे। वे व्याकरण के पाठी और जैन शास्त्रों के पारगामी विद्वान थे। वेआगरा के स्माहगज के जिनमंदिर में प्रवचन किया करते थे । टोडरमलजी के समकालीन होते हुए भी वे टोडरमलजी से उम में बीस वर्ष बड़े थे; क्योंकि टोडरमलजी का जन्म विक्रम संवत् 1775-76 सम्भावित है और भूधरदासजी का जन्म वि. सं. 1756-57 माना जाता है। __यद्यपि भूधरदासजी जिन-अध्यात्म परम्परा के प्रतिष्ठित विद्वान और वैरागी प्रकृति के सशक्त कवि थे; तथापि तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और साहित्यिक विषम परिस्थितियों के बीच उन्हें अपनी धारा को प्रवाहित करना था। यही कारण है कि वे तत्कालीन कवियों की काव्य रचना पर खेद और आश्चर्य व्यक्त करते हुए जनता को इसप्रकार सावधान करते हैं ---- राग उदै जग अंध भयो, सहजै सब लोगन लाज गंवाई। सीख बिना नर सीख रहे, विसनादिक सेवन की सुधराई । ता पै और रचे रस काव्य, कहा कहिये तिनकी निठुराई । अंध असूजन की अंखियान में, झोंकत हैं रज रामदुहाई ॥ राग के उदय के कारण यह सम्पूर्ण जगत अंधा हो रहा है और सभी लोगों ने लज्जा छोड़ दी है। अरे भाई ! सप्त व्यसनों की सुघड़ता तो सभी 1. जीवन पत्रिका : पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के अन्त में प्रकाशित | 2. पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व - डॉ. भारिल्ल पृष्ठ 44-53 3. प्रस्तुत शोध ग्रन्थ - तृतीय अध्याय 4. जैनशतक छन्द 65

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