________________ दशमः सर्गः विलोक्य तं यौवनशालिनं सद्वृत्त्याभिरामं नयशीलवन्तम् / भूयादयं धर्मविशेषविज्ञः पवित्रसंस्कारयुतश्च मादृक् // 44 // अर्थ-यौवन से सुशोभित, सदाचार से सुन्दर ऐसे लोक चन्द्रको नीति और शीलशाली देखकर "यह मेरा जैसा धर्मका" विशेषज्ञाता और पवित्र संस्कारवाला बने" // 44 // યૌવનથી સુશોભિત, સદાચારથી સુંદર એવા ચંદ્રને નીતિ અને શીલસંપન્ન જઇને આ મારા જે ધર્મને વિશેષ જાણકાર અને પવિત્ર સંરકાવાળ બને. 44 इत्थं स्व सद्भावनयाऽनया सौ प्रत्येककार्ये सह त व्यनैपीत् / / स्याल्लौकिकं वाथ च धार्मिकं तत्सर्वत्र पित्रैव सहास्य यानम् // 45 // अर्थ-इस प्रकार की इस अपनी सद्भावना से वे हेमचन्द्र प्रत्येक कार्य में उन्हें अपने साथ ले जाते थे. लोकचन्द्र भी चाहे वह लौकिक कार्य हो चाहे धार्मिक कार्य हो सर्वत्र पिता ही के साथ रहते. // 45 // આવા પ્રકારની એ પોતાની ભાવનાથી તે હેમચંદ્ર દરેક કાર્યોમાં તેને પિતાની સાથે રાખતા. લેકચંદ્ર પણ ચાહે તે લૌકિક કામ હોય કે ધાર્મિક કામ હોય બધે જ પિતાની સાથે રહેતા. ૪પા व्यापारकार्ये परिपूर्णरीत्या विशेषविज्ञः कुशलश्च जातः / एवं विनिश्चित्य च तातपादैःस्वकार्यभारो निहितो अमुस्मिन् // 46 // ... अर्थ-यह लोकचन्द्र अय व्यापार कार्य में परिपूर्ण रीति से विशेषविज्ञ और कुशल हो गया है ऐसा जब हैमचन्द्र को अच्छी तरह निश्चय हो गया तब उन्होंने अपने ऊपर का समस्त कार्यभार उस पर रख दिया // 46 // [ આ લેકચંદ્ર હવે વ્યાપારના કાર્યમાં સંપૂર્ણ રીતે વિશેષ જાણકાર અને કુશળ બની ગમે છે, તેમ જયારે હેમચંદ્રને સારી રીતે નિશ્ચય છે ત્યારે તેમણે પિતાના ઉપર सधणे मार तेना 52 भूटी . // 46 // यथारलिन्दस्य समीरणेन प्रसार्यते गन्धरणो हरित्सु तथैव पुंमोऽपि गुणाः सुवृत्त्या नास्त्यत्र केषामपि संविवादः // 17 // अर्थ-जिस प्रकार कमल के गन्ध गुण को हवा चारों दिशाओं में फैला देती है उसी प्रकार पुरुष के भी गुणोंको सदाचार सर्वत्र फैला देता है इस कथन में किसी की भी दो रायें नहीं हैं // 47 //