Book Title: Lonkashah Charitam
Author(s): Ghasilalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 416
________________ त्रयोदशः सर्गः अर्थ-इस प्रकार मुनिजनों के गुणों के वर्णन से अलंकृत हुए वे लोकाशाह मुनि कि जिन की कीर्ति दूर दूर तक फैल चुकी है लोकैषणा से रहित चित्तवृत्ति वाले होकर सर्वत्र विश्वास करने योग्य वचन वाले बन गये // 74 // આ પ્રમાણે મુનિજનોના ગુણેના વર્ણનથી શોભાયમાન એ લેકશાહ મુનિ કે જેમની કીર્તિ દૂર દૂર ફેલાઈ ગઈ છે. લોકેષણાથી રહિત ચિત્તવૃત્તિવાળા થઈને બધે જ વિશ્વાસપાત્ર વચનવાળા બની ગયા. આ૭૪ जनेषु संमान्यवचा अथायं जगाम शिष्यैर्यतिभिः कदाचित् / युतोऽमदावाद पुरं विशालं महोत्सवेनाथ विवेश तत्र // 75 // ___ अर्थ-मनुष्यों में जिनके बचन मान्य हो चुके हैं ऐसा ये लोकाशाह मुनिराज किसी एक समय अपने शिष्य यतियों से युक्त हुए विशाल शहर अहमदाबाद पधारें वहां बडे उत्सव के साथ इनका प्रवेश हुआ. 75 // મનુષ્યમાં જેમના વચનો માન્ય થયેલા છે, એવા એ લેકશાહ મુનિરાજ કોઈ સમયે પિતાના શિષ્ય યતિની સાથે આ વિશાળ અમદાવાદ શહેરમાં પધાર્યા. ત્યાં ઘણાં જ ઉત્સવપૂર્વક તેમને પ્રવેશ થયો. છપા झवेरि वाडस्थितमुन्यगारे स तस्थिवान् प्रावृषिकाल अत्र / वस्तुस्वरूपप्रतिपादिका गीः श्रुत्वाऽनुयायी समभूज्जनौ घः // 7 // .. अर्थ-अहमदाबाद में इन्हों ने झवेरी वाडा के उपाश्रय में वर्षायोग वीर संवत् 2000, विक्रम सं. 1531 में चातुर्मास रहे, इनकी वस्तु स्वरूप प्रतिपादक वाणी को सुनकर वहां का समस्त जनसमूह इनका अनुयायी हो गया // 76 // અમદાવાદમાં તેમણે ઝવેરીવાડના ઉપાશ્રયમાં વર્ષાગ વીર સંવત ર૦૦૦, વિક્રમ સંવત 1531 માં ચાતુર્માસ કર્યો, તેમની વસ્તુસ્વરૂપ પ્રતિપાદક વાણીને સાંભળીને ત્યાંને સઘળે જનસમૂહ તેમના અનુયાયી બની ગયે. આ૭૬ आसंश्च ये केऽपि यतिप्रियावा जनाश्च वा ये यतयोऽत्र सर्वे / ते संप्रबुद्धा मुनिदीक्षयाऽथ सुसंस्कृताचारयुता अभूवन // 77 // ' अर्थ-यहां पर जो भी कोई यति प्रिय जन थे वे तथा जो भी यतिजन थे वे सब इनके उपदेशों द्वारा संप्रबुद्ध होकर मुनिदीक्षा से सुसंस्कृत आचार वाले बन गये, // 77 //

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