Book Title: Lonkashah Charitam
Author(s): Ghasilalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 460
________________ चतुर्दशः सर्गः भतु नाम शुभमान छे. 'तथाचोकमन्यत्र' "उद्भवमिथ्यात्वविषं, भावय दृष्टिं च कुरु परां भक्तिम् ,भाव नमार तो 'ज्ञाने युक्तो भव सदापि" पञ्चमहाब तरक्षां कोपचतुष्कस्य निग्रहं परमम् , दुर्दान्तेन्द्रियविजयं तपः सिद्धिविधौ कुरूद्योगम् " // 137 // पुण्यं पापं च हेयं स सम्यग्दृष्टिस्तु मन्यते / कथं स्यात्पुण्यकृत्येऽयं सादरो ब्रूहि मे गुरो ! // 13 // ___ अर्थ-शंका-सम्यग्दृष्टि तो पुण्य और पाप को हेय-छोडने योग्य मानता है तो फिर वह पुण्य कार्यमें आदर सहित कैसे होगा ? आप गुरुदेव ! कहिये // 138 // શંકા--સમ્યગ્દષ્ટિ તો પુણ્ય અને પાપને હેય-છોડવા ગ્ય માને છે, તો પછી તે પુણ્યકાર્યમાં આદરયુક્ત કેવી રીતે થશે? તે આપ ગુરૂદેવ ! કહો. ./138 शृणुतावत्प्रवक्ष्यामि संक्षेपाच तवोत्तरम् / . शंकोद्भूतायतस्ते स्यान्निरस्ताऽशांति दायिनी // 139 // अर्थ-गुरुदेव ने कहा-सुनो-मैं तुम्हें संक्षेप से इसका उत्तर देता हूं इससे अशांति उत्पन्न करने वाली तुम्हारी शंका दूर हो जावेगी. // 139 // - ગુરૂદેવ કહે છે સાંભળો હું તમને સંક્ષેપથી અને ઉત્તર આપું છું, તેનાથી અશાંતિ ઉત્પન્ન કરવાવાળી તમારી શંકા દૂર થશે. 139 यथा कश्चिद्विवाहार्थी कन्या संबंधिनोजनान् / .. सत्करोति तथा चायं गुर्वाचार्यान सुसेवते / 140 // ___ अर्थ-जिस प्रकार विवाह का अर्थी पुरुष कन्या पक्षके सम्बधियों का सत्कार करता है उसी प्रकार यह सम्यग्दृष्टि मोक्षाभिलाषी होता हुआ भी गुणस्तवन आदि द्वारा निर्दोष चारित्र पालन करने वाले गुरुदेव आचार्यादिकों की भक्ति करता है. यह सब पुण्य कार्य है // 140 // જેમ વિવાહની કામનાવાળા અથ પુરૂષ કન્યા પક્ષને સંબંધિને સત્કાર કરે છે. એજ પ્રમાણે આ સફદષ્ટિ ક્ષેચ્છુ થઈને પણ ગુણસ્તવન વિગેરેથી નિર્દોષ ચારિત્રનું પાલન કરવાવાળા ગુરૂદેવ આચાર્યોની ભક્તિ કરે છે. આ તમામ પુણ્ય કાર્ય છે. 14 रत्नत्रयं च मोक्षस्य कारणं गदितं जिनैः / .. व्यवहारनयाज्जीवो निश्चयात्तत्त्रयात्मकः // 141 // अर्थ-मोक्ष का कारण जो रत्नत्रय कहा गया है वह व्यवहार नय से ही कहा गया है निश्चय नय से नहीं, क्यों कि निश्चय नय से इन तीनों

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