Book Title: Lonkashah Charitam
Author(s): Ghasilalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 407
________________ लोकाशाहचरिते गुरून गुरून् सम्यउपास्य तेभ्यो वियोपविद्याः सकला अधीत्य / जातोऽथ विद्वान् गणितैरहोभिः प्रतिष्ठितोऽभूद्विदुषां सपङ्क्तो // 43 // अर्थ-विशिष्ट गुरुजनों की उपासना करके इन लोकाशाह महाराज ने उनसे समस्त विद्याएं एवं उपविद्याएं प्राप्त करली और कुछ ही दिनों में ये विद्वान् बन गये एवं विद्वानों की श्रेणी में इनकी प्रतिष्ठा होने लगी. // 43 // વિશેષ પ્રકારના ગુરૂજનની ઉપાસના કરીને આ લેકશાહ મહારાજે તેમની પાસેથી સઘળી વિદ્યાઓ અને ઉપવિધાઓ મેળવી લીધી. અને થોડા જ દિવસોમાં તેઓ વિદ્વાન બની ગયા અને વિદ્વાનોની પંક્તિમાં તેમનું સન્માન થયા લાગ્યું. 43 सिद्धान्तशास्त्राण्यवगाद्य सोऽयं विशेषजिज्ञासुरथो बभूव / ज्ञानावृतेर्जात विशिष्ट योग्यात् क्षायोपशम्याद भवत्तदस्य // 44 // ज्ञाने च वैशिष्टयमतः स्मृतेश्च विकासभावोऽजनि तत्प्रभावात् / पूर्वापरस्थस्य समस्तवेद्यस्य विस्मृति धिगतस्य जाता // 45 // अर्थ-आचारांग आदि बत्तीस सूत्रों का अध्ययन करने से इनकी जिज्ञासा तत्त्वोंकी ओर बढी ज्ञानावरणीय कर्म के विशिष्ट योग्य क्षयोपशम होने के कारण इनके ज्ञान में वैशिष्टय आ गया और इससे स्मरणशक्ति इनकी विकसित हो गई. अतः जो कुछ भी विषय ये पढते वह पूर्वापर रूप से इन के ज्ञान में जमा रहता. वह विस्मृत नहीं होता // 44-45 // આચારાંગ વિગેરે બત્રીસ સૂત્રોનું અધ્યયન કરવાથી તેમની જીજ્ઞાસા તો જાણવાની તરફ આગળ વધી, જ્ઞાનાવરણીય કર્મને વિશેષ પ્રકારથી ગ્ય રીતે ક્ષય થવાના કારણે તેમના જ્ઞાનમાં વિશેષતા આવી ગઈ અને તેમાંથી તેમની સમરણ શક્તિને વિકાસ થયો તેથી જે કોઈ વિક્ય તેઓ વાંચતા તે પૂર્વાપરપણાથી તેમના જ્ઞાનમાં સ્થિર થતું. તે ભૂલાતું નહીં, ૪૪-૪પા सिद्धान्तशास्त्राध्ययनेन सोऽयं यतिक्रियां वीक्ष्य च वर्तमाने। पूर्वे च तैस्तैर्यतिभिः कृतां तामाराध्यमाणामतुदत्स्वचित्ते // 46 // अर्थ-सिद्धान्त शास्त्रों के अध्ययन से यति क्रियाओं के सम्बन्ध में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त कर और पूर्व में यतिजनों ने इनका पालन किस तरह से किया है और अब वर्तमान में ये यतिजन किस तरह से - (स्व. च्छंदवृत्ति से) इनका पालन कर रहे हैं यह देख करके ये अपने मन में भीतर ही भीतर बडे दुःखित रहने लगे. // 46 //

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