Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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रासाका ऐतिहासिक कथा - सार बजवारा, कालपी, एटावा, उज्जैन, धार श्रादि सब क्यामखांके अधीन हो गए। मलूखां और क्यामखांका फिर कभी मिलाप न हुआ ।
उस समय काबुलमें बादशाह तैमूर राज्य करता था जिसने आठों दिशाओं में अपनी धाक जमा ली थी और जिसने रूम, ईराक और खुरासान आदि जीत लिए थे। हिन्दुस्तान लेनेके लिए वह चढ़ पाया । मलूखां तैमूरसे जा भिडा, परन्तु तैमूर लंग जैसे जबरदस्त शक्तिशालीके सामने वह क्षण भर भी न ठहर सका । दिल्लीको तैमूरने खूब लूटा और तख्त पर आ बैठा । कुछ दिन रह कर खिदरखांको पचास हजार पठानोंके साथ दिल्ली छोड़ कर वह स्वयं काबुल लौट गया । जय मलूखांने तैमूरलंगके जानेकी बात सुनी तो उसने दलवल-सहित श्रा कर दिल्लीको घेर लिया। खिदरखांके साथ युद्धमें मलूखां मारा गया और तैमूरके दलकी जीत हुई।
मलूखांकी श्रोरसे निश्चिन्त होकर खिदरखांने सब भोमियों, जमीनदारोंको वशमें कर लिया और क्यामखां चौहान पर फरमान दे कर मौजदीनको भेजा । मौजदीन लाहौरका शक्तिशाली फौजदार था । उसने क्यामखांको फरमान दे कर बादशाह खिदरखांकी सेवा करनेके लिए बहुत समझाया, किन्तु वह अपने निश्चय पर अटल रहा और युद्ध करनेके लिए तैयार हो.गया। दोनों ओरसे घमासान युद्ध हुआ । अगवान मौजदीन और क्यामखां चौहान भिड़ पड़े। मौजदीनकी फेंकी हुई बरछीसे वच कर क्यामखाने बाणके द्वारा उसका काम तमाम कर दिया। मौजदीनके मर जाने पर खिदरखांकी सेना तितर-बितर हो गई।
___ अपनी हारसे खिदरखां बहुत रुष्ट हुआ । क्यामखांने भी दिल्लीका शासक बदल डालनेका निश्चय किया और अपने पूर्व-परिचित बोझरीवाल लकब वॉल अन्य खिदरखांको पत्र लिखा कि-"मैं तुम्हें दिल्लीका राज्य देता हूं, यदि इच्छा हो तो प्रायो।" उसने पत्र पाते ही तुरन्त दलवल-सहित तैयार हो कर क्यामखांको पत्रोत्तरमें अपनी तैयारीका समाचार दे कर उसे भी तैयार होनेको लिखा । क्यामखां सेना सहित मुलतानमें खिदरखांसे जा मिला और पहले नागौरमें राठौड़ोंसे युद्ध कर फिर दिल्ली लेनेकी ठानी । नागौरमें उस समय राव चूंढा था, उसकी मृत्यु हुई और राठौर सेनाकी पराजय हुई। ____ क्यामखां और खिदरखां दोनों नागौरको वशमें कर पठान खिदरखांको जीतनेके लिए दिल्ली चले । पठान भी अपनी सेना ले कर लड़ने पाया परन्तु क्यामखांके साथ युद्ध करता हुश्रा हार कर भाग गया। क्यामखांने अपने मित्र खिदरखांको दिल्लीका सुलतान बनाया और दोनों सुख-पूर्वक रहने लगे। खिदरखांने सोचा कि क्यामखां सबल है, इसकी इच्छानुकूल शासन होगा; अतः इसे मार डालना ही श्रेष्ठ है। इन कुत्सित विचारोंसे उसके उपकारको भूल कर एक दिन बादशाह खिदरखांने क्यामखांको धक्का दे कर नदीमें गिरा दिया । क्यामखां नदीमेंसे निकल पाया और खिदरखांकी बदनीतोको जानते हुए भी बादशाहसे लड़ना धर्म-विरुद्ध समम कर संतोष किया। अपने जीवनमें क्यामखाने पड़े-बड़े युर किए थे। ९५ वर्षकी उनमें उसके शरीरका अन्त हुआ।