Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 160
________________ १०२ [ क्यामखां रासा --- परिशिष्ट' छुट्टे जग दल विच फिरनि । तिन्ह येहा हाल । भैही पसर उछेर कर । जाणू सूते ग्वाल ॥ ६१ ॥ गोली निकली अंग गज । चलणी दीसें घाव दुसार यों । ज्यो नभ पड़े रुख धर पवनथें । कबि कै जाणू मन्दिर ढह गये । हसती मारण कोह कर । जे हाथी धरती पर पये । तिन्हंदी येहे लग्गे जांन कहि । काले पड़छाही सी देखिये । कै सुती तीन पाव कुजर कटे । तरवारी डिग हथ्थी भू पर पया । मगरादं हिक्क पाव उप्पर खड़ा । सुशि येहा तल तर जड़ उप्पर हुई । उखल्या लगि मद वहंदे रहंदे नही । दौड़े दंती दती आप विच । होवै चौ धोले धोले दंत मुह । जेही बगपंती । घंटा घए विच बीजली । जाणूं चमकती ॥६५॥ दंती ॥ उणिहारे । विच तारे ॥ वेद बिचारे । बरषादे मारे ॥ ६२ ॥ सुभट सुजात । सुणि बात ॥ गज गात । रात ॥६३॥ धाव | दाव ॥ भाव । बाव ॥ ६४॥ | लगै मैमंती | हाथी आया खान पर । चीर दंसार । खांजी आग्गै तमक कर । सुंड पई कटि देखियें । पइया नाग पहाड़थै । कबि बाही तरवार ॥ येही उणिहार | किया विचार ||६६ || और गज आया खान पर । गति परबत जेही । बहदा देही ॥ पैठी केही । भरणैदी उणिहार ही । मद बरछी मारी खांनजी । सुड बंबई विच नागए बड़ी । वह आगें परे न बाव हलावै रूखनौ । त्यों येही ॥६७॥ धर सके । दती मैमत । गज थररत ॥

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