Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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क्यामखां रासा; टिप्पण]
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पृष्ठ ४०, पद्याङ्क ४७८ से. चौदाका सहायक दिलावरखा......
इसका उल्लेख "छंद राउ जइतसीरउ" में भी है। यह नाहह और नरहडका स्वामी था । बीकानेर राज्यके संस्थापक वीर बीकाने उसे इस प्रदेशसे निकाल दिया (छंद ४५) पृष्ठ ४२, पद्याङ्क ४९९. वीका ढ़ोसी गयो हो उतते आयो भाजि......
बोकाकी अनेक विजयोंका सूजा नगरजोतरचित, 'छंद राउ जइतसीरउ' में वर्णन है। इसने दिल्ली तक धावा किया था (छंद ४६)। यह संभव है कि ढोसीके आसपास उसे विशेष सफलता न मिली हो। पृष्ठ ४३, पद्याङ्क ५१० से. लूणकरणका ढोसी पर आक्रमण.....
बीकानेरके इतिहाससे सभी को ज्ञात है कि ढोसी पर आक्रमण बीकाके पुत्र लूणकरणके जीवनकी अंतिम घटना थी। 'छंद राउ जइतसीरउ के अनुसार क्यामखानियोंने लणकरणकी अधीनताम अपनी फौज भेजी थी (छंद ८०)। यह वर्णन ठीक हो तो हमें मानना पड़ेगा कि बीदावतोंकी तरह लडाईके समय इन्होंने राव जैतसीका साथ छोड़ दिया था।
__ क्यामखानियों और राठौड़ोंका वैर काफी पुराना था । रासासे हमें ज्ञात है कि राव बीकाके चाचा रावत थे। कांधलने इन्हें खूब दःख दिया था और उनकी बहुतसी पैतृक भूमि पर उसने अधिकार कर लिया। रावके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि उसने फतहपुरके बहुतसे गाँव जीत लिये (देखिये, दयालदासकी ख्यात; 'सादूळ प्राच्य ग्रन्थमाला', पृष्ठ २०) । स्वयं रासाने दौलतखांकी बढ़ाई करते समय केवल इतना ही लिखा है कि न उसने दूसरोंकी भूमि दवाई और न दूसरोंको अपनी भूमि दबाने दी (पृष्ठ ४२, पद्म ४६७)। एक गाँवकी जीतको एक प्रान्तको जीत लिखने वाला कवि जब अपने एक पूर्वजकी स्तुतिमें केवल इतना कहनेको विवश हो तो यह सिद्ध है कि दौलतखां निर्वल शासक था और उसके समय कायमखानियोंको संभवतः अपने राज्यका कुछ भाग छोड़ना पड़ा। पृष्ठ ४३, पद्याङ्क ५११. तुरक मान कीनी मदत, जॉनत सकल जहांन......
ढोसीके स्वामी पठान अवश्य थे, किन्तु यह बताना कठिन है कि उनके सहायक तुर्कमान किस स्थानके अधिकारी थे। पृष्ट ४४, पद्याङ्क ५१८. बाबरका दौलतखांसे मिलना.....
यह मनगढंत कथा है। हाँ, इससे इतना अवश्य प्रतीत होता है कि क्यामखानी गोवधके विरोधी थे; वे सर्वथा अपने हिन्दू संस्कारोंको न छोड़ सके थे । पष्ठ ४४, पद्याङ्क ५२५. अलवर में हसनखां......
हसनखां मेवाती अपने समयका प्रसिद्ध वीर पुरुष था। गुजरातके प्रसिद्ध एवं प्रतापशाली सुल्तान बहादुरशाहको इसने भरण दी थी। वावरके प्रबल विरोधियोमें यह एक था और इसका प्रभाव इतना अधिक था कि बाबरने इसे विद्रोहियोंकी जड़ लिखा है। (तुजके