Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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[कवि जान कृत
अवशिष्ट टिप्पण विक्रमाजीत द्वारा कांगड़ाकी विजय
सुरजमल पर विक्रमाजीतके आक्रमण और कांगड़ाकी विजयका शाहजहांके मुन्शी जलाला तिया द्वारा रचित शश फतह कांगड़ामें अच्छा वर्णन है । इससे पहाड़ी प्रान्तके भूगोल और तत्सामयिक राजनैतिक परिस्थिति पर पाठकोंको कुछ अधिक प्रकाश मिलेगा। अतः इसका सार यहाँ प्रस्तुत करते हैं :
___ बादशाहने सूरजमलके विद्रोहके विषयमें सुनते ही उसे दबाने के लिये शाहजहांको नियुक्त किया और उसे कांगड़ा जीतनेकी भी आज्ञा दी। सूरजमलने पंजाबके कई परगनोंमें लूटमार मचा रखी थी। शाहजहांने विक्रमाजीतको सेनाका नायक बनाया, और वादशाह जहांगीरके १२ वर्षके शहीरयार महीनेमें (१ शाबान, हिनी सन १०२७) उसे गुजरातसे एक बड़ी फौजके साथ रवाना किया। सूरजमल यह सुनते ही पठानकोटकी तरफ भागा और मऊके दुर्गमें जा कर ठहरा । मऊ चारों तरफसे पहड़ों और जंगलोंसे घिरा हुआ है, देशके बहुत विशाल और मजबूत दुर्गोमें उसकी गिनती है। राजा विक्रमाजीतने शीघ्र दुर्गको घेर लिया। सूरजमलने सामना किया, किन्तु पराजित हुआ। उसके ७०० व्यक्ति, मर्द और औरत मारे गये। स्वयं सूरजमल राजवसुके बनाये हुए नूरपुर नामके किले में कुछ साथियों सहित भाग गया। विक्रमाजीतने यहाँ उसका पीछा किया, और सूरजमलने चम्बाके राज्यमें घुस कर तारागढ़के किलेमें आश्रय लिया। चार दिनके घेरेके बाद विक्रमाजीतने यह किला भी हस्तगत किया। यहां उसकी फौजके बहुतसे आदमी मारे गये। सूरजमल फिर भागा और उसने चम्बाके राजाके यहाँ शरण ग्रहण की।
विक्रमाजीतने तारागढकी विजयके बाद हारा, पहाडी, ठठा, पकरोटा, सूर और जावालीके किले जीते । इसी बीचमे सूरजमलके भाई माधोसिंहने कुछ उपद्रव किया। विक्रमाजीतने नूरपुर
और कांगडेके वीचके कोटिला दुर्गमें उसका मुकाबला किया। भयंकर रक्त-पातके बाद शाही सेना किला जीतनेमें समर्थ हुई। कुछ ही दिनोंमें विक्रमाजीतने सब पहाडी प्रदेश पर अधिकार कर लिया। शत्रुके थाने उठा कर उसने शाही थाने बिठाये और गाही नौकरीको अनेक जागीरें दी। सूरजमलका चम्बाके राजाके दुर्गमें देहान्त हो गया । चम्बाके राजाने उसकी तमाम सम्पत्ति, जिसमें चौदह बड़े हाथी और २०० अरबी और तुर्की घोड़े शामिल थे, विक्रमाजीतको सौंप कर बादशाहसे क्षमा प्राप्त की।
इसके बाद विक्रमाजीतने कांगड़े पर घेरा ढाला । श्रन्त गाही सिपाहियोंने एक जगह दुर्गकी दीवार तोड डाली । भयंकर लड़ाई हुई । शाही तोपखानेने शत्रुको भून डाला । शत्रु भाग निकले। राजा विक्रमाजीतने कांगड़ेमें घुसकर विश्वस्त अफसरोंको नियुक्त किया और जिन शूरोंन इस युद्धमें वीरता दिखाई थी उनके मनसब बढाये । इससे पूर्व कांगड़े पर कोई विजय प्राप्त न कर सका था । (इलियट और डाटसन, भाग ६, पृष्ठ ५१८-५३१)।