Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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क्यामरखां रासा; टिप्पण]
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पडेगी।" सरहदी अगड़ेमें सलाबतखांने ताना देते हुए कहा, "क्या खबर पड़ेगी ? बीकानेर तो खबर पड़ी । क्या रावजी गंवारी करते हो ?" इतना सुनते ही अमरसिंहने कटारी चलाई । वह सलावतखांक पेटमे घुस गई। शाहजहांने अमरसिंहको पहले तो घर जानेका हुक्म दिया, किन्तु दाराशिकोहके कहने पर मनसबदारोंसे कहा, "देखो, न जाने पाये । अमरसिंहको मार लो।" गौड विट्ठलदासके लड़के अर्जुनने धोखेसे वार कर अमरसिंहको गिराया और गुर्जवदारोंने आ कर अमरसिंहका काम तमाम किया । जब लाश बाहर भेजी गई तो गोकुलदास, मीरखां
और हरनाथ भाटीने वख्सी मूलकचंदको मार डाला। गोकुलदास और हरदास अमरसिंहके दस अन्य नौकरों सहित यहीं लड़ कर काम आये । प्रातःकाल होते ही राठौड वूल, राठौड भावसिंह, गिरधर व्यास आदिने अमरसिहकी रानियोंको सती किया और फिर अर्जनसे बदला लेनेका विचार किया। बादशाहने उनके विरुद्ध खजिहां सैयदको भेजा । बल राठौड़ आदि अमरसिंहके ६४ आदमी वीरतासे लड़ते हुए काम आये ।
संवत् १७०१ श्रावण शुक्ला द्वितीयकी तीन या चार घड़ी बीतने पर अमरसिंहने सलावतखांको कल किया और स्वयं मारा गया। लाशके बाहर आते ही उसी समय उनके १२ साथियोंने भी लड़कर वीर गति प्राप्त की।
बलू राठौढका सैयद खांजहांसे युद्ध श्रावण सुदी ३ के तीसरे पहर हुआ। पृष्ठ ८७. पद्यांक ९९३, ताहिरखां हैं वलखमैं साहिजादै के पास......।
शाहजादा मुरादने सन् १६४६ ई. जुलाई सातके दिन बल्खमे प्रवेश किया। पृष्ठ ८७, पढ्यांक ९९१. इंद खोहकै......।
इसका असली नाम अन्दरूखद है । इस स्थान पर मुगल सेनाने अस्त्राखानी नजमुहम्मदको परास्त किया। पृष्ठ ८९ पद्यांक १०१९, फिरी मुहिम बलखकी......
औरंगजेबने सन् १६४७ अक्तूबर ३ के दिन वल्ख से प्रयाण किया। पृष्ठ ८९, पद्यांक १०१९. बहुर पठाई फौज तव, गढ़ खंधारको लैन......।
ईरानके बादशाह अव्वास द्वितीयने फरवरी १६४६ में मुगलोंसे कंधार जीत लिया। शाहजहांने औरंगजेबको कंधार जीतनेकी आज्ञा दी । शाहमीरकी लडाईमें, जिसका संभवतः रासामें वर्णन है, मुगल सेनापति रुस्तमखां विजयी हुआ । सितम्बर ३, १६४९ के दिन औरंगजेबने दुर्गका पहला घेरा उठाया। पृष्ठ ८९, पद्यांक १०२३. कंधार पर दूसरा आक्रमण......।
यह सन् १६५२ में फिर औरंगजेबकी अध्यक्षतामें हुमा । पृष्ठ ९०, पयांक १०२६. कंधार पर तीसरा आक्रमण......।
• तीसरा आक्रमण सन् १६५३ मे दाराकी अध्यक्षतामे हुआ। पृष्ठ ६०, पद्यांक १०३०. दौलतखांकी मृत्यु......।
संवत् १७१० अर्थात् सन् १६५२ मे हुई ।