Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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[कवि जान कृत अब्दुल्लहके विचरते, विचर भई दल मांहि ।
आये सब रहानपुर, कहूँ रह्यो को नांहि ॥ पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३५, अंवर आयौ साजि दल, गनती आवै नाहि.......
अंबरका अर्थ यहां मलिक अंबर है। ऐसे राजनीतिज्ञ दक्षिणने कम ही उत्पन्न किये हैं। शासन-प्रबन्ध एवं सैन्य-संचालन इन दोनोमे यह निपुण था। खानखाना, खाने जहां आदिको परास्त करना इसी वीर हब्सीका कार्य था। अहमदनगरके राजाकी इसने अच्छी सेवा की । सन् १६२६ मे इसकी मृत्यु हुई । इसके विस्तृत वर्णनके लिये जहांगीरका कोई इतिहास देखें। पृष्ठ ६२, पद्यांक ७३३. अब्दुल्लह...... । ___अब्दुल्ला जहाँगीरका प्रसिद्ध सेनापति था। मेवाड़में इसने अनेक विजय प्राप्त की। इससे प्रसन्न हो कर जहाँगीरने इसे फिरोज जंगको उपाधि दी । मेवाड़से यह गुजरात भेजा गया। पृष्ट ६४, पद्यांक ७६०. सगरपै......।
सगर महाराणा अमरसिंह प्रथमका चाचा था। शाहजादे परवेजको मेवाड़ पर भेजते समय वादशाह जहांगीरने इसे मेवाडके राणाकी उपाधि दी और मुगलों द्वारा अधिकृत मेवाड़का अधिकांश प्रदेश इसे दे दिया । मेवाडसे संधि होने पर जहाँगीरने इससे राणाकी उपाधि ले कर रावतकी उपाधि दी। सन् १६१७ ई० मे इसका देहान्त हुआ ।। पृष्ट ६५, पद्यांक ७६९. खुसरो वीतर वीतखां......
पदयांक ८०० के टिप्पणका अन्तिम भाग देखें । यह इसका सामान्य उदाहरण है कि जहाँगीरके राज्यमं दिल्लीके निकट भी गडबड थी। पृष्ट ६७, पद्यांक ७९८. राजा विक्रमजीतकै......।
यह राजकुमार खुर्रमका अत्यन्त विश्वासपात्र था। सन् १६१८ में जहाँगीरकी आज्ञासे सोरठके जामको इसने दिल्लीके अधीन किया । सन् १६१९ में शाहजादे शाहजहांकी तरफसे यह कांगड़े पर भेजा गया । इसीके साथ अलिफखां भी रहा होगा । दक्षिणम अम्बरके विन्द शाहजहाँकी। सफलताका पर्याप्त श्रेय विक्रमजीतको है । शाहजहाँ के विद्रोही होने पर विक्रमजीतने मागरेको लूटा दिल्लीके निकट विलोचपुर नामके स्थान पर शाहजहांके पक्षमें शाही सेनाके विरद्ध युन्द करता हुभा यह मारा गया । इसका असली नाम सुन्दर था । पृष्ठ ६७, पद्यांक ८००. सूरजमल......।
यह मऊ नूरपुरके राजा वसुका पुत्र था। सन् १६९५ में जब मुर्तजाखांने कांगदा लेनेका प्रयत्न किया तो यह भी शाही फौजदारोमं था। शाही विफलतामें सूरजमलका पइयन्त्र भी शायद कुछ कारण रहा हो। इसके विरद शिकायतें होने पर भी यादशाहने इसे क्षमा कर दिया । दक्षिण में शाहजादा शाहजहांको इसने अच्छी सेवा की । मुर्तजाकी मृत्युके बाद इसे शाही सेनाका मुख्य सेना