Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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१०४
[ क्यामखां रासा - परिशिष्ट
छाल ॥ ७५ ॥
झुंड ।
ठणकार ।
उछलंदे असवार यों । लगि गोली नाल | बंदर लेदें देखिये । उलटी कर भिड़दे भार आप बिच । सुभटाँदे हाथ पांव कटि कटि पवें । अरु फुट्टै टूटि गई करवार भी । हथी रहे चंगे न्हाये सूरिवां । धारांदे बरछी बाही सूरिवे । जेही विच चोट लगी रत उछलें । विच सिप्पर सिप्पर बरछी पोइली । तिसक्या जाणूं किरछित नालियां । भीगंदे लोहसू लोहा मिलै । सुणियै झाल सहारै लोहदी । सापुरस गज्जै जोधा क्रोध बिच । अरु कुंभ फुटि सिर टुट्टिदे । छुट्टै फड़फड़ाह सिर सुभटदे । वै तनथै मार मार बिण और कुछ । नां बैण विचारे । तड़फड़ाहि वर धरणि पर । सिर बिण बेचारे । डगमगाहि घाइल चरण | मदुवै उणिहारे ॥७६॥ लोहू नदी सुरस्सती । जमना गज मारे । गंगा जेहे दंद मुह । करतार सॅवारे | तिरवेणी संगम होवा । जांन भेद बिचारे । सुभट परे रत पड़े सूरिवां खेत बिच । अरु सुंड लगी मुँह सुभटदै । सुणि उकत प्रगास ॥
झुझार ॥
सार |
धार ॥ ७८ ॥
न्यारे ।
न्हांवदे | जाणू रत न्हांवदे । जाणू
पूजारे ||८०||
कुंजर
पास ।
पीवणदी
प्यास ।
जाणू सुत्ते देख कर । निकल्या सर्प पहाड़थे । पीवंदा अंदादे गज सुंडांदे
धगे कीये । हौर मणके मेर कर । माला कीनी
मुंड ॥
टुंड |
कुंड ॥ ७६ ॥
जांणी ।
णी ॥
नीसाँणी ।
बज्जै
रत
पांणी ॥७७॥
स्वास ||८१||
सीस ।
ईस ||
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