Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 158
________________ - क्यामखां रासा–परिशिष्ट काइर कंपै थरहरै । अखी अंधियार । इनकू गज येहे लगे। निसदी उणिहार ॥४७॥ देखि तुरंग कुरंगसे । कुजर पये धाइ। भज्जि चले असु चमकिकै । गज पहुंचे प्राइ । कहत जान कवि जाणियों। यह हुवा सुभाइ । पिच्छै हो काली घटा । अग्गै हो बाइ ॥४८॥ तट सुभटा कर ताजणां । सनमुख असु आणै । घाव लगाये रोस विच । जेहे मन मांणे ॥ अग्गे हथी भग्गदे । असु गैल लगाणे । जेहे बदल बावथै । वै फिरै भगाणे ॥४६।। साथी अल्लिफखांदे । हथी मद बहंदे । गुरज मोगरी नां बर्दै । गड़ सांगै सहदे ।। अंधियारी हल धूलदे । राखें नां रहंदे । चरखी बांण न मांणदे । हंढे रिप गहंदे ॥५०॥ लाई भारी जांण कर । हो सूर करूर । गज तन बरछी गड गई। बैठी भरपूर । कीये महावत बहुत बल । न होंदी दूर । परबत ऊपर देखिये । जाणूं पड़े खिजूर ॥५१॥ रोस होइ करि सूरिवै । गज मारे भारी। बाद बाद बाही भलै । समसेर दुधारी ॥ लीक कसौटी देखियें। कबि उक्ति विचारी। कै मिलि बैठी मोटियार । सिदूर सँवारी ॥५२॥ जोधा क्रोध बिरोधसौ । गज सौहै धाये। हथियारौ हाथी हणें। हथ चंगे लाये ॥ सुंड कटी करवार लगि। ये भेद वताये। नाग जांण डिग रूंखथै । धरती पर आये ॥५३॥ सुभट अमिट गजसू लहै। चित्त हंदै चाइ । कट्टि सटि है क्रोध विच। किरमांणी धाइ।

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