Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 157
________________ अलिफखांकी पैडी] बिण बोले को ना लखै । आपणे पराये । जेही दरियादी लहर। दूनौ दल आये ॥४०॥ धरण धसमसी खुंद खुर। गिरवर थरराये । कमठ कलमल्या कसमस्या । धौले सुख पाये ।। सेस सांस रूंध्या हीया । अंग अंग भै छाये । करन अहेड़ा जिददा। दूनो दल धाये ॥४१॥ जांए संजोइ लहै घटा। गरजत नीसांण । गोली वोलेसे पड़े। अरु बूंदै बांण । चंद्रबांण निस बिच बगे। बिजली चमकारं । अंधी ल्याई मेहनौ । दल धूलन जाणं ॥४२।। असु हीसै मैमंत गज। मद बहै हंकार । मार मार ही सूरिवां । मुंह बैण उचारे । दुद मच्या बिरचै कटक । मारैही मारै। दिनकू दिन को नां कहै । हम रैण बिचारै ॥४३॥ चटके तीर चलावदै । कर सुभट कमाणं । अटकै विचही आवदै । बाणैसू बाण ॥ सटके मिसरी म्यानथै । बाहै करपाण । लटकै सिर वै नस लगै। नालक दूजाणं ॥४४॥ दुह दल अग्गै गज बणें। उमँड़े घए काले । गुंज गरज बगपंतसे । है दंत उजाले । मद बरसणि अंकस असणि । घूमंणि मतवाले । मंदिर जेहे गज बण । अरु सुड पनाले ॥४५॥ हाथीसू हाथी लडै । मद वहत अपार । मिली जांण काली घटा। वरसंदी जल धार । बाव चली है जोरदी। कवि कीया विचार । तर तमालदे ज्यौ मिले । तेही उणिहार ॥४६।। हाथी देखे आंवदे। सुख सुभट अपार । घटा देख ज़्यों होइ सुख । संजोगिण नार ।।

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