Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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क्यामखा रासा भूमिका
दिल्ली ले गया । मीरको बादशाहने सम्मान दे कर मनसब बढ़ाया । मीरांके साथ बादशाहका बहुत प्रेम था, जब वह बीमार हुश्रा तो बादशाह मिलने श्राया । मीरांने कहा कि मेरे पुत्रोंमें कोई सपूत नहीं है, इस क्यामखांको मनसब देना, यह तुम्हारी सेवा करेगा । बादशाह जब चला गया तो मीरांने अपने पुत्रों को बुला कर क्यामखांकी श्राज्ञामें रहनेकी व क्यामखांको इन्हें प्यारसे रखनेकी शिक्षा दे कर परलोक गमन किया ।
बादशाहने क्यामखांको मनसय, सरपाव, और यावनी दे कर उमराव किया । एक बार बादशाह क्यामखांको दिल्लीका फौजदार बना कर स्वयं ठटा विजय करनेके लिए गया । मुगलोंने बादशाहकी अनुपस्थितिका लाभ उठा कर दिल्ली पर चढ़ाई कर दी । चौहान क्यामखांने मुगलोंसे इस प्रकार युद्ध किया कि लड़े सो मरे और बचे सो भाग गए। लूटमें जो बहुत-सा माल - खजाना हाथ लगा, क्यामखांने उसे बादशाह के सुपुर्द कर दिया । बादशाहने उसे सरपाव दे कर सम्मानित किया और मनसब बढ़ा कर खानजहां नाम रक्खा । पेरोसाह (फिरोजशाह ) बादशाहने और उसके पीछे उसके पुत्र महमूदने फिर नजीरखांने बादशाह हो कर क्यामखांका बहुत सम्मान किया। जब बादशाह नसीरखां बीमार हुआ तो उसके पास मलूखां नामक गुलाम ( जिसे बादशाह पेरोसाहने पाल-पोस कर बड़ा किया था ) प्रधान पद पा कर बादशाहके पास रहता था । लोगोंने यही निश्चय किया कि इसीने तख्तके लोभसे बादशाहको मारा है ।
यादशाह नसीरखांके कोई पुत्र नहीं था, खुशामदी कामदारोंने मलूखांको बादशाह बन बैठनेकी राय दी । जब क्यामखांने सुना तो कहा कि जो नौकर है वह बादशाह कैसे होगा ? गुलामको बादशाह बनानेमें शोभा नहीं है । प्रधानने गढ़की चाबियां ला कर दीवान क्यामखांके सम्मुख रखीं, और दिल्लीके तख्त पर बैठनेका श्राग्रह करते हुए कहा कि " श्राप ही दिल्लीका तहत लीजिए, श्रापके पूर्वज दिल्लीपति थे, श्रापके लिए यह कुछ नई बात नहीं है !” क्यामखांने कहा- "मुझे दिल्लीपति बनने की बिल्कुल इच्छा नहीं है, कौन भावी संतति के लिए आफत मोल ले ?"
प्रधानने तब कहा – “यदि श्राप बादशाह नहीं होते तो फिर हम मलूखांको तख्त पर बिठाते हैं।” ऐसा कह कर मलूखांको बादशाह बना दिया । क्यासखांने वहांसे निकल कर अपने घरकी राह ली । जव मलूखांको यह ज्ञात हुआ तो वह ससैन्य क्यामखांको मारनेके लिए चल पड़ा । २० कोसके फासलेमें जब क्यामखांको मालूम हुआ तो वह मलूखांसे युद्ध करनेके लिए पीछे लौट आया और दोनोंमें परस्पर घमासान युद्ध हुआ । मलूखांके पैर उखड़ गए, वह दिल्ली में आ कर छिप गया । क्यामखांने भागते हुएका पीछा किया परन्तु हाथी, घोड़े, द्रव्य आदि जो लूटमें हाथ लगे ले कर हिसार में आ बिराजा । देश-देशसे पेशकश आने लगी । कमधज, कछवाहे, बैरिया, भट्टी, तँवर, गोरी, जाटू, तावनी, सरोवे, नारू, खोखर, चंदेले, हुसैन कलीम सा, साह महमद, ममरेजखां, इदरिस, मौजदी, मुगल, आदि सब सेवा करने श्राए । तूनपुर, रिणी, भटनेर, भादरा, गरानौ, कोठी,