Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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रासाका ऐतिहासिक कथा-सार
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काबुलके भोमियोके बगावत करने पर शाह जहाँगीर स्वयं लाहौर थाया और उसने काबुल भेजने के लिए कांगडासे अलफखांको बुलाया । इसी समय लख्खी जंगलकी पुकार थाई कि दुढी भौर बहू लोगोंने मुल्क ऊजद कर दिया है । वादशाह सोच रहा था कि लखी जातके भोमियोंको गिरफ़्तार कर लाहौर लानेके लिए किसे भेजा जाय; तब श्रासफखांने दीवान अलफखांको भेजने की राय दीं । बादशाहने दीवानजीको सिरोपाव दे कर ससैन्य लखो जंगलको घर बिदा किया ।
दीवान अलफनां लाहौरसे चल कर कसूर श्राया । भटी मनसूर डरसे भाग कर बादशाहके पास चला गया। दीवानजीने अखीरकी गढ़ी पर आक्रमण किया । परस्पर घमासान युद्ध हुआ । ३०० मनुष्यों को मार कर शेष सबको बन्दी बना लिया। आखिरको जीत कर दीवानजी डोगरों की तरफ मुड़े । इनका श्रागमन सुन कर ढोगरे पहलेहीसे भाग गए । दीवानजी बटू गए, वहां वाले भी दोवानजीका सामना करने में असमर्थ रहे । फिर दीवानजीने खाई डेरा क्रिया, आसपासके भोमिए सब श्राधीन हो गए। वहांसे चिहुनी, देपालपुर गए । दुढी बहादुरखाने या कर भेंट दी और अधीन हो गया । जो भोमिए ( जागीरदार ) भेंट ले कर थाए थे, सबको झलफखांने बादशाह जहांगीर के पास भेज दिया । बादशाह अत्यंत प्रसन्न हुया । चिहुनी, देपालपुर, महमदौट, भटिंडा, पहन, श्रालमपुर, पिरोजपुर, भटनेर, जमालाबाद, धिग, कबूला, रहमताबाद, रहीमाबाद, श्रादि लखी जंगलके सरदारोंको सर कर लिया । भटी, समेज, जोहिए, दुढी, बटू, नेपाल, विराट, डोगर, ख़रल, अरव और धौला, खेडा आदि सब पर दीवानने विजय दुन्दुभी बजाई |
कांगड़ा पहाड़ पर सरदारखां शासक था । उसकी मृत्यु के बाद पहाडी फिर बगावत करने लगे । बादशाहने अलफखांको बुला कर उसे चौथी बार पहाट फ़तह करनेके लिए भेजा। दीवानजीके सदलबल पहुंचने पर पहाडी लोग सम्मुख न आ कर पहाडोंकी थ्रोटमें छिपे रहे । दीवानजीने काहलर, मंडई, सिकदराको अपने अधीन कर लिया। उधर सिकंदर शाहके सिवा कोई भी तुर्क नहीं गया था । चौहान लफखांके जाने पर पहाडी घर-वार छोट कर भागे फिरते थे । उन सबने विचार किया कि दीवान से हम सब एक हो कर लढेंगे । जगतसिह पैठनिया, विसंभर चंव्याल, भौनका चंद्रभान, जसवाल फतू, भोपत, श्रमूल, वूला, सूरजचन्द, ठकर कल्याणा, श्यामचद, जगतमाल, जिया, राय कपूर श्रादिके सारे कटकने एकत्र हो कर नगरौटेमे डेरा किया । क्यामखानी और पहाडियों में परस्पर खूब घमासान युद्ध हुआ । पहले दिन जगतसिह रणक्षेत्र से भाग गया । दीवान अलफांकी विजय हुई । दूसरे दिन फिर पहाडी सेना एकत्र हो रणक्षेत्र में श्राई | दीवानजीने उसे हरा दिया, इसी प्रकार तीसरे दिन भी पहाडी हारे । चौथे दिन और भी बहुतसे भोभिए पहाडी दलमें शामिल हो कर लडे, परन्तु उनकी हार हुई | पाँचवें दिन और छठे दिन भी अफ खांकी जीत और पहाडियोंकी हार हुई | पैठानसे सादकखाने अलफखांको पत्र लिखा कि या तो तुम श्रा कर मिलो या सेना भेजो। अलफखांने देखा कि शत्रुदल उमडा हुआ है। युद्ध से मैं क्यों लौटकर अपने कुलमें कलंक लगाऊँ ? मरना एक दिन है ही । उसने अपने थोड़े दलको रखा कर समस्त शाही सेना रोष पूर्वक सादकखांके पास भेज दी ।
जब जगतसिंहने सुना कि अलफखांके पास थोडी-सी सेना है तो वह निशान बजाता हुया