Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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[कवि जॉन कृत परपीर पिराये की पीर पिरावै । खान अलिफ समुद्र अथाह है जो मनसा सोई धावत पावै । कान गहै तेई मान लहै जगु
प्रान की इच्छा दिवान पुजावै ॥६३८।। ॥ दोहा । सोरह से इक्यानुवै, ग्रन्थ कर्यो इहु जान ।
कवित पुरातन मै सुन्यौ, तिह बिध कर्यो बखांन ।।६३६॥ दौलतखा दीवांनको, अब हो करौ बखांन । तेग त्याग निकलंक है, जानत सकल जहांन ।।६४०॥
श्री दीवांन दौलतखांके पुत्र १ ताहरखां, २ मीरखां, ६ पासफखा । ताहरखां कुल को तिलक, रचि कीनौ करतार । मीर खांन पुनि असद खांन, भइया ताहि विचार ॥९४१।।
दौलतखांको बखान ॥ दोहा ॥ जबहिं भये बस काल के, अलिफखांन दीवांन ।
बैठे उनकी ठौर तब, दूलह दौलत खांन ।।९४२॥ जहांगीर पतिसाह 'जू, दे के मनसब मान । सौप्यौ है गढ़ कांगरौ, दोलत खां चहुवान ।।९४३॥ पातसाह असौ कह्यौ, तुम बिन औसौ कौन । जाते निहचल रहत है, नगर कोट अरु भौन ॥९४४॥ आइ बिराजे कांगर, दौलतखां चहुवान । भुमियनको भै उपज्यो, संके राजा रान ॥६४५।। बासी सकलं पहारके, जेर करे चहुवांन । डंड भरै सेवा करै, थहरै ज्यौं तर पांन ॥६४६।। जहांगीर कीनौ गवन, तब उपजी जग रौर। सब थानै उठि उठि गये, रह्यौ न कोऊ ठौर ॥९४७॥