Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 149
________________ क्यामखां रासा] दौलतखाँ दीवांन जबहि बैकुंठ सिधायौ । सुख दाइक विन वहुत लोगन दुख पायौ । अबहि कहौ वह बरस छाड़ि दीनौ जगु जामै । चार भेद समुझियो गुप्त प्रगट है जामै ॥१०३४।। संन सहस पचास पुनि तेरह लैहु प्रमान जी। ११० १७५ ६६ ५२ ६१५ ४५ = १०६३० संवत सत्रह सै जु दस गवन कर्यो दीवांन जी ___५. २३७ ८४ ... = १७१० यह करबित तुरकी लिखहु, बहुरहि दसके काढ़। संन संवत तू देख लै, अावै घाट न बाढ़ ॥१०३५॥ जब यह खबर दीवानकी, पुहची जाइ नरेस । तबहि खांन सरदारको, दीनौ इनको देस ॥१०३६।। देस' दयो सरपाव दै, बहुत दलासा कीन । पुनि दयाल द्वै छत्रपति, विदा वतनकू दीन ॥१०३७॥ तब घर आये वतन लै, खा सरदार मुछार । हितुवन मन आनंद भयो, द्रुजन भये विकार ॥१०३८।। सीवारी सब थरहरे, जैसी उपजी त्रास । घर घरनी सब छाडिक, जाइ गह्यौ वनवास ।।१०३६।। दल सुनि खां सरदारके, द्रुवननि परी दहल । घटा देख फोरयों घटा, तुरियो टोडरमल ॥१०४०।। तरवर ताहरखांन तन, साहस सत सपूत । सरदारां सरदार है, रजपूतां रजपूत ॥१०४१।। ॥सवईया॥ दान खग निकलंक राख्यो न दरिद्र रक सुभट असंक जसु प्रगट मुछारको । गुनीजन दै आसीस सत्रनि काटै सीस बच्यो जिन भाजि मग लीनो दधपारको ।

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