Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 145
________________ क्यामखां रासा ] दीवांन । इद पठये सहजादै जुगल, पुहचे है सतरज लये, नीकी विध थान रहे, मलि इक रुसतमखां दखिनी, दौलतखां दीवान ॥ ९९२ ॥ सहिजादै के पास । खोहकै थान || १|| उजबकको मांन । गई अनयास || ६६३ || रुसतमखां ताहरखां है बलखमे, मीच निगोड़ी पापनी, आइ सुनिये कान | कीयो पयान || ६६४ || तन जु प्रसेद । कैसे कहियै जीभ सौ, कैसे तरवर ताहरखान जू, जगते ताहरखांको मर्न सुनि, आयौ रोम रोम रोवन लगे, ताहरखा कीनौ गवन, बस्त भगौहे ह्वै गये, तरुनापै ही उठि गयो, ब्रिधपनको पहुच्यौ नही, पूनोको पहुंच्यो नही भाग जियको उपज्यौ खेद ||५|| स्रवन सुने ये बैन । रत रोये जुग नैन ॥ ९६६ ॥ दै तरवर बैराग । बाव भाग ।। ६९७|| लोगके कमोदनि मंद । नाहि ॥ १००० ॥ यह बपरीत लागै बुरी, गह्यो सप्तमी चंद ॥ १६८ ॥ थारी के मुक्ता भये, ढरे ढरे ही जाहि । सुरतर ताहरखांन बिनु, केहूं न द्रिग ठहराइ ||६|| हियो कमल नाहि न खुलत, मुर्भित पल पल माहि । छवि रवि ताहरखांन जू, डिष्ट परत है कहु कैसे के ऊपजै, नैन चकोर कहु वा डिष्ट पर नही, ताहरखां मरि करि ताहरखांन जू, हितुवन यह नैन बहन हिरदै दहन, मनहि गहन प्यारे ताहर खांन बिन, क्यों करि है उन डाइन बैरन बलख, लयो करेजा काढ़ || १००३ || अनंद । मुख चंद ।। १००१ ॥ दत दीन । तन छीन ॥ १००२ ॥ मन गाढ़ । εἰ

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