Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
View full book text
________________
३०
क्यामख रासा - भूमिका
सदल रणक्षेत्र में श्रा पहुँचा। दीवानजीने भी अपने दलकी तीन अनी बनाई । एक ओर रूपचन्द दूसरी ओर वासी डढवाल और मध्य में दीवान स्वयं रहा । पहाड़ियोंने इन्हें चारो तरफ से घेर लिया । घमासान युद्ध हुथा । रूपचंद और वासी हार कर भाग खड़े हुए अलफखां सत्य और साहस के बल पर पैर रोप कर युद्ध करने लगा। * दीवानजीके बड़े-बडे वीर योद्धा इस लढाईमें काम श्राए । एदल और कमाल क्यामखानी और जमाल, मुजाहद, भीखन, बहलोल, लाडू, पिरोजखां, दोला, बू इस कंदर, मांरूफ, सरीफ, ऊदा, परता, चतुरभुज, जगा, मनोहरदास, कौजू, हरदास, दोदराज, मोहत यादिने हजारों पहाडी वीरोंको धराशायी करके अंत में वीरगति प्राप्त की । स्वयं दीवानजी और उनके चतुर नामक हाथीने अपने चौहान वंशका पानी बडी सफलतासे दिखाया । पहाडी लोग तंग आ कर भागने लगे। दीवानने उन्हें खदेड़ते हुए पीछा करके १३०० मनुष्योंको मार डाला । जब पहाडियोंने देखा कि भागनेसे छुटकारा नही होगा, तो सब एकत्र हो कर युद्ध करने लगे । घमासान युद्ध करते हुए दीवान अलफखां शहीद हो गए ।
वि० सं. १६८६, हि० सन् १०३५ रोजा तारीख के दिन दीवान श्रलफखां वीरगतिको प्राप्त हुए | दीवानजीकी दरगाह बढी चमत्कारी है, बहुतसी करामातें प्रकट हैं । निर्धनको धन और निर्बुद्धिको बुद्धि व मार्गभ्रष्टको मार्ग देनेवाले है । इस प्रकार अलफखा महा पीर प्रगटे ।
कवि जानने वि० सं. १६९१ में पुराने कचित्तके अनुसार इस ग्रन्थकी रचना की । श्रब दीवान दौलतaint विवरण लिखते हैं
-
दीवान थलफखांके पीर हो जाने पर उसका पुत्र दौलतखां उत्तराधिकारी हुआ । बादशाह जहाँगीरने उसे मनसब दे कर कांगडेका गढ़ सुपुर्द किया । वह भी कांगडेमें रह कर पहाडी सरदारों द्वारा सेवा कराता हुआ शासन करने लगा । जहाँगीरकी मृत्यु हो जाने पर सब थाने उठ गये और श्रराजकता छा गई, कितु दीवान दौलतखां अपने स्थान पर अविचल रहा । पहाडियोंने मिल कर गढ़के चौतरफ घेरा डाल दिया, तब दीवानके दलने पहाडियोंको मार भगाया और नगरकोटकी रक्षा की ।
शाहज़हॉने दिल्लीके तख्त पर बैठते ही दौलतखांको मनसब बुढा कर सम्मानित किया । दोवानने १४ वर्ष काँगडेमें रह कर शासन किया; फिर काबुल और पेशावरमे जा कर रहा । सीमाके सब शासक दीवानसे मिल कर चलते थे । दौलतखांके तीन पुत्र थे-ताहरखां, मीरखां, और असदखां ।
दौलतखांका पुत्र ताहरखां बादशाहसे मिलनेके लिए अकबराबाद गया । बादशाहने प्रसन्नताले उसे मनसब दे कर बडा प्यार किया । जब शाही दरबारमे गजसिंहके पुत्र राठौर अमरसिंहने सुलावतखांको मारा तो बढ़ा घमासान मच गया । बादशाहने हुक्म किया कि राठौड़ोंको मारो,
कवि जानने इस युद्धका वर्णन बड़े विस्तारके साथ किया है, और दीवान अलफखाकी वीरताकी बड़ी प्रशंसा की है।