Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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क्यामखां रासा]
तव घर आयो जीतिक, देत जैत नीसांन । खां जलालकी सर करै, को है असौ अनि ।।४५७।।
जलालखाने छापौरी आंबैर फतिह की ॥दोहा॥ छापौरी ऊपर चढ्यो, फिर चकवै चौहान ।
उतके अनगंन भोमिया, मारि कर्यो घमसांन ॥४५८।। बहुरि गये प्रांबर पर, मारि मिलाई धूर । पै भुमिया नीके लरे, मरे लाज संपूर ॥४५६।। हाथीखान जलाल को, भुमियनि घेर्यो नि । दलमै काहू ना लख्यो, तक्यो आप दीवांन ॥४६०।। लोग लगे है लूटकौ, काहूको सुधि नांहि । अपनी भुज बर खां जलो, आइ पर्यो उन मांहि ॥४६१।। करी लये वै जात है, पुंहचे जल्लोखांन । छाडि गये ज्यों लै भजे, असे लाये बांन ।।४६२।। तब घर आये जीतिक, खां जलाल चहुवांन । सूरत्तनको जगतमै, सब को करत बखांन ।।४६३।। समसखांनु जब मरि गयौ, फतिहखानु तिह ठौर । व्याह्यौ हो बहलोलकै, बदत न काहू और ॥४६४॥ भाई और बिमात है, तिनही न बांटौ देत । जो कछु उपज जूंझनू, सबै आपही लेत ॥४६५।। तब जोधापै चलि गयो, नांव मुबारकसाह । नांनां जू उपर करहु, ज्यों हम होइ निबाह ।।४६६।। तब जोधन यों कह्यो, मोते कछ न होइ । मामू तेरे निकट है, बीका बीदा दोइ ॥४६७।। तबहि मुबारकसाह उठि, आयो मामू पास । वैहू भीर न कर सके, तब उठि चल्यो निरास ।।४६८।।