Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ क्याम्खा रासा] ५६ तब रानौ यह वात सुनि, काटि काटि कर खाइ । 4 अमरा दीवानक, थानै सक्यौ न आइ ॥६६०।। ऊंटौले हौ समसखां, उत पायौ कर साथ । रानैको चहुवांनने, भले लगाये हाथ ॥६९१|| महजादै यह वात सुनि, कीनौ प्यार अपार । कह्यौ अलिफखां समसखां, जुगल बड़े जूझार ।।६६२।। जवहि भये वस कालके, अकवर साह जलाल । वैठ्यौ तवही तखत पर, साह सलेम मूंछाल ॥६६३।। जवते बैठे तखत पर, जहांगीर · हुव नाम। ' निस दिन आठी जाममै, देव ही सूं काम ॥६६४।। अलिफखांन दीवानसौ, वहुतै किरपा कीन । नगर · फतिहपुर प्यार कर, लाल मुहर करि दीन ॥६९५।। राइ मनोहर अलिफखां, पठय दये मेवात । मेव सेव लागे करन, भेट देहि दिन रात ॥६६६।। दलपत ऊपर बिदा भये ॥दोहा॥ दलपत वीकानेरीये, कटक करे अनग्यांन । बदत नही पतिसाहको, लूटत फिरत जहांन ॥६६७।। दलै भजायो ज्याव दी, कर दल सरसै जाइ । बित लूट्यौ पतिसाहको, फूल्यौ अंग न माइ ।।६९८॥ वात सुनत पतिसाहक, रिस न समाई अंग । पठये सैख कवीर पुनि, अलिफखांनु जुग संग ॥ ६६६।। वीस और उमराव सग, चले लरनकै चाइ । दलपति रहि नाही सक्यौ, सरसे उतरे आइ ।।७००। । सरसै मांहि लराई भई उमरावनिसौं ॥ दोहा । पानी ऊपर आपम, मच्यौयेक । दिन जुद्ध । अपने अपने कटक लै, प्राय सवै विरुद्ध ॥७०१।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187