Book Title: Kyamkhanrasa
Author(s): Dashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
View full book text
________________
१६
रासाका ऐतिहासिक कथा- सार उखड जाने पर भी वक्ष स्थिर रहा, यह एक विचित्र बात हुई। फिरोजखाने लज्जासे ऐसा रुख बदला कि वह इनसे हँस-बोल कर बात भी न करता था। ताजखां और मुहम्मदखांने अपने घर जानेका इरादा किया और दमामे वजाए । खाने रुष्ट हो कर सेवकोंको श्राज्ञा दी कि क्यामखानी चौहान बंधुओको मत जाने दो । स्वयं दलबल-सहित युद्धके लिए तैयार हुआ। दोनों भ्राता बड़ी वीरता-पूर्वक लडे । ताजखां युद्ध करता हुआ घायल हो कर गिर पडा । महमदखांको युद्धसे ही कब फुरसत थी कि भाईकी खबर लेते । राठौड लोग घायलोंको उठाते हुए पाए । उन्होंने ताजखांको उठा कर देख-भाल की और घाव अच्छा होने पर उसे हिसार भेज दिया। ताजखाने युद्ध भी किया
और जीवित भी रह गया। इससे इसका बडा सुयश हुआ। फिरोजखां तो इससे बडा भय खाता था। इसने खेतढ़ी, खरकश, चवौहाना, पाटनको जीता। पाटन और रेवासे मिल कर उसने प्रांवेरको वशमें किया । कछवाहे, निरवान, तंवर और पंवार श्रादिसे पेशकश ली। ताजखां हिसारमें और महमदखां हाँसीमें रहा । ताजांकी' मृत्युके बाद बड़ा पुत्र फतहखां हिसारमें पिताका उत्तराधिकारी हुआ।
फतहखांक दस पुत्र थे-जलालखां; हैवतसाह, महमद साह, असदखां, दरिया साह, साह मनसूर, सेख सलह; वला, वंखामसूर और हेसम ।
फतहखां बढ़ा प्रवल और वीर था। उसने एक ही मुहूर्तमें छः कोटको नींव डाली । सं० १५०८ चैत्र शुक्ला ५ के दिन अपने नामसे उसने फतहपुर शहर वसाया । उस दिन हिजरी सन् ८५७ सफ़र महीनेकी २० तारीख थी। आस-पासके भोमिये पल्हू, सहेवा भादरा, भारंग, वाइले श्रादिके स्वामी जुहार करने पाए। जव कोट तैयार हो रहा था वह रनाउमें रहा और कोट तैयार होने पर फतहपुर पा गया । एक बार बादशाह बहलोल लोदी रणथंभोर लेनेके लिए चढ़ कर पा रहा था। जब फतहखांने सुना तो वह भी सदल-बल बादशाहसे जा मिला। बादशाहने उसका बड़ा सम्मान किया और फतहखांके श्रागमनको अपनी फतहका चिन्ह समझा। उधर रणथंभौरकी सहायताके लिए मांडका सुलतान हिसामदी आ पहुँचा । परन्तु बादशाहसे लड़नेमें असमर्थ हो कर फाटक बंद कर बैठा रहा । फतहखांने मांडके सुलतानके साथ घमासान युद्ध किया और उसका सर काट कर बादशाहके पास भेजा । फतहखांका बड़ा नाम हुआ और बादशाहने उसे मनसब दे कर सम्मानित किया। बादशाहसे जय-पत्र ले कर फतहखां स्वदेश लौटा और सुख-पूर्वक रहने . लगा।
नारनौलसे अखनने कहलाया कि मेवाती लोग मिल कर बग़ावत करने पर उद्यत है। तुम स्वयं प्रानो, या सेना भेजो। फतहखांने अपनी सेना भेजी जिसने मेवातियोंको ढोसीकी
१. फतहपुर परिचयानुसार सं०१४७७ से १५०३ तक २६ वर्ष राज्य किया।
२. फतहपुर परिचयमें मुहम्मदखाके झूमा नाटकी सलाहसे बसानेका उल्लेख है पर मूलतः यह शहर १४वीं सदीके पहलेका बसा है।