Book Title: Kuvayalanand Author(s): Bholashankar Vyas Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan View full book textPage 8
________________ निवेदन भारतीय साहित्यशास्त्र के अध्ययन में यह मेरा तीसरा प्रयास है, जिसे मैं साहित्यिकसमाज के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसके पूर्व मैं धनन्जय के सावलोक दशरूपक की हिंदी व्याख्या 'हिंदी दशरूपक' तथा ध्वनिसम्प्रदाय के शब्दशक्तिसंबंधी विचारों पर 'ध्वनिसम्प्रदाय और उसके सिद्धांत, भाग १ ( शब्दशक्तिविवेचन )' विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत कर चुका हूँ । 'ध्वनिसम्प्रदाय और उसके सिद्धांत भाग १' मेरा डाक्टरेट का प्रबंध है तथा इसे नागरीप्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया है । 'हिंदी दशरूपक' पर उत्तरप्रदेश सरकार ने पुरस्कार घोषित कर मुझे प्रोत्साहन दिया है। विद्वानों ने इन दोनों ग्रन्थों को समुचित प्रोत्साहन देकर मेरे उत्साह में अभिवृद्धि की है। अब मैं भारतीय साहित्यशास्त्र विषयक इस तीसरे पुष्प को लेकर उपस्थित हो रहा हूँ । प्रस्तुत व्याख्या के गुण-दोषों के विषय में मुझे कुछ नहीं कहना है। मैंने यहाँ ठीक उसी शैली का आश्रय लिया है जो 'हिंदी दशरूपक' में पाई जाती है। किंतु 'हिंदी दशरूपक' से इस व्याख्या में एक विशिष्टता मिलेगी । तत्तत् अलंकार के साथ मैंने विस्तृत टिप्पणियों की योजना कर मम्मट, रुय्यक, पंडितराज जगन्नाथ आदि के अलंकारसंबंधी मतों के साथ दीक्षित के मतों की तुलनात्मक समालोचना की है। इसके अतिरिक्त कुवलयानंद की उपलब्ध दो टीकाओं— गंगाधर वाजपेयी कृत रसिकरंजनी तथा वैद्यनाथ तत्सत् कृत अलंकारचन्द्रिका - का समुचित उपयोग कर उनके मतों का भी संकेत किया गया है । आशा है, विद्वानों को ये दोनों बातें रुचिकर प्रतीत होंगी। अलंकारशास्त्र बड़ा गहनPage Navigation
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