Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 23
________________ ( १८ ) २५३ २५८ २६० . . विषय पृष्ठ | विषय पृष्ठ एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम पूर्वोक्त प्रत्येक झीनस्थितिक कर्म उत्कृष्ट आदि स्थितिमें नवकबन्धके कौन कर्मपरमाणु नहीं। ____ की अपेक्षा चार प्रकारके होते हैं इसका हैं इसका निर्देश २५१ निर्देश २७५ उसी स्थितिमें कौन परमाणु हैं इसका निर्देश २५२ | स्वामित्व २७५-३५६ उस स्थितिमें नवकबन्धके जो कर्मपरमाणु हैं। मिथ्याल्वके अपकर्षणादि चारोंकी अपेक्षा झीन. उनका कितना उत्कर्षण हो सकता है। स्थितिक कर्मों के उत्कृष्ट स्वामी का निर्देश २७६ इसका निर्देश | सम्यकत्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्वका निर्देश २८४ सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्वका । दो समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम निर्देश २८७ स्थितिकी अपेक्षा कथन । अनन्तानुबन्धीकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्वका तीन समय अधिक श्रावलिसे लेकर अावलिकम निर्देश ૨૯૨ श्राबाधा तक की स्थितियोंकी अपेक्षा मध्यकी आठ कषायोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट जाननेकी सूचना स्वामित्वका कथन २६४ एक समय कम श्रावलिसे न्यून श्राबाधाकी क्रोधसंज्वलनकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०० अन्तिम स्थितिमें कितने विकल्प नहीं मानसंज्वलनकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०२ होते हैं और कितने विकल्प होते हैं इकका मायासंपलनकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०३ निर्देश २६१ । लोभसंज्वलनकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०३ जो होते हैं उनमें कौन उत्कर्षणसे झीन- स्त्रीवेदकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०५ स्थितिक हैं और कौन अझीनस्थितिक हैं। | पुरुषवेदकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०६ इसका निर्देश २६३ । नपुसकवेदकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन ३०७ एक समय कम प्रावलिसे न्यून श्राबाधाकी छह नोकषायोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्वामित्व कथन ३०८ अन्तिम स्थितिके विकल्पका कथन करके मिथ्यात्वकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व कथन ३१२ अागेकी एक समय अधिक स्थितिके सम्यक्त्वकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व कथन ३२० विकल्पोंका निर्देश व उत्कर्षणसे झीना सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्वामित्व सम्यक्त्वके झीन विचार २६६ समान जाननेकी सूचना ३२२ उससे एक सयय अधिक स्थितिकी अपेक्षा | अाठ कषाय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, पूर्वोक्त प्रकारसे विचार २७० रति. भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जघन्य एक समय अधिक जघन्य श्राबाधा तक पूर्वोक्त स्वामित्व ३२२ ___क्रम चलता है इसका निर्देश २७१ अनन्तानुबन्धीकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व ३२८ दो समय अधिक जघन्य बाबाधासे लेकर नपुंसकवेद की अपेक्षा जघन्य स्वामित्व :३३४ उत्कर्षणसे झीनस्थिति कर्मप्रदेश नहीं स्त्रीवेदकी अपेक्षा जघन्य स्वाम्रित्व ३४६ होते इसका निर्देश २७२ | | अरति-शोककी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व ३५० संक्रमणसे झीनस्थितिक और अझीनस्थितिक अल्पबहुत्व कर्मप्रदेशोंका निर्देश २७३ | मिथ्यात्वादि प्रकृतियोंमें चारोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट उदयसे झीनस्थितिक और अझीनस्थितिक । अल्पबहुत्व ३५६ कर्म प्रदेशोंका निर्देश २७४ । जघन्य झीनस्थितिक अल्पबहुत्व ३५८ ३५६-३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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