Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 22
________________ ( १७ ) २१७ भाव १५३ विषय पृष्ठ | विषय शेष गतियोंमें जघन्य प्रदेश अल्पबहुत्वके जाननेकी । भागाभाग २११ सूचना १२३ परिमाण २१६ मनुष्यगतिमें अोधके समान जाननेकी विशेष क्षेत्र सूचना १२३ स्पर्शन एकेन्द्रियोंमें जघन्य प्रदेश अल्पबहुत्वका कथन १२४ नान जीवोंकी अपेक्षा काल ૨૨૨ भुजगार विभक्तिका कथन १३३-१७१ नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर २२६ भुजगार विभक्तिके तेरह अनुयोगद्वारोंका । २२६ नामनिर्देश १३३ अल्पबहुत्व २२६ समुत्कीर्तना सत्कर्मस्थान २३५-२३५ स्वामित्व मङ्गलाचरण २३४ एक जीवकी अपेक्षा काल सत्कर्मस्थानोंका कथन २३४ एक जीवकी अपेक्षा अन्तर १४२ | तीन अनुयोगद्वारोंका नामनिर्देश २३४ नानाजीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय १४६ प्ररूपणा २३४ भागाभाग १५० प्रमाण २३५ परिमाण अल्पबहुत्व २३५ क्षेत्र मीनाझीनचूलिका २३५-३६६ स्पर्शन १५६ । मङ्गलाचरण २३५ नानाजीवोंकी अपेक्षा काल १६३ झीन और अझीन पदकी विशेष व्याख्या नानाजीवोंको अपेक्षा अन्तर ____ जाननेकी सूचना २३५ भाव विभाषा शब्दका अर्थ २३६ अल्पबहुत्व १६६ झीनाझीन अधिकारके कथनकी सार्थकता २३६ पदनिक्षेप १७१-१८७ यह अधिकार चूलिका क्यों कहा गया है इसका पदनिक्षेप और वृद्धिका स्वरूपनिर्देश १७१ निर्देश २३६ पदनिक्षेपके तीन अनुयोगद्वारोंके नाम १७२ प्रकृतमें चार अनुयोगद्वारोंका नामनिर्देश २३७ उत्कृष्ट समुत्कीर्तना समुत्कीर्तना पदका अर्थ २३७ जघन्य समुत्कीर्तनाकी सूचनामात्र १७३ समुत्कीर्तना अनुयोगद्वार २३७-२३८ उत्कृष्ट स्वामित्व १७३ अपकर्षण श्रादिकी अपेक्षा झीनस्थितिक जघन्य स्वामित्व १८४ कर्मोंका अस्तित्व कथन २३७ उत्कृष्ट अल्पबहुत्व १८५ विशेष खुलासा २३७ जघन्य अल्पबहुत्व १८६ प्ररूपणा अनुयोगद्वार। २३७-२७५ वृद्धिविभक्ति कथन १८७-२३४ ! कौन कर्म अपकर्षणसे झीनस्थितिक हैं इसका तेरह अनुयोगद्वारोंकी सूचना १८७ निर्देश २३६ समुत्कीर्तना १८७ | अपकर्षणसे अमीनस्थितिक कर्मोंका व्यारव्यान २४० स्वामित्व १८६ | कौन कर्म उत्कर्षणसे झीनस्थितिक है इसका एक जीवकी अपेक्षा काल निर्देश २४२ एक जीवकी अपेक्षा अन्तर २०१ | कौन कर्म उत्कर्षणसे अझीनस्थितिक हैं इसका नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय २४७ १७२ १६३ ० निर्देश ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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