Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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( १५ ) है। जो कर्मपरमाणु बन्धके समय जिस स्थितिमें निक्षिप्त होते हैं वे यदि उत्कर्षण या अपकर्षण हुए बिना उदयकालमें उसी स्थितिमें रहते हैं तो उनकी यथानिषेकस्थितिप्राप्त संज्ञा है। तथा बन्धके समय जो कर्मपरमाणु जिस निषेकस्थितिमें प्राप्त हुए हैं वे उदयके समय यदि उसी निषेकस्थितिमें न रहकर जहाँ कहीं दिखलाई देते हैं तो उनकी उदयस्थितिप्राप्त संज्ञा है । इसप्रकार उत्कृष्टस्थितिप्राप्त आदिके भेदसे ये कमपरमाणु चार प्रकारके हैं यह निश्चित होता है ।
__स्वामित्व-इस अधिकारमें मिथ्यात्व आदि अवान्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा उक्त चार प्रकारके कर्मपरमाणुओंके उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य ये चार भेद करके उनके स्वामित्वका विचार किया गया है।
अल्पबहुत्व-इस अधिकारमें उक्त सब भेदोंके अल्पबहुत्वका विचार किया गया है। इसप्रकार इतना कथन करनेके बाद चूलिका सहित प्रदेशविभक्ति अधिकार समाप्त होता है।
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