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प्रभु महावीर देवना गुणोनो प्रथम जाणी अने पछी प्रभु महाबीरादि देवनी जे पूजा सेवा करे छे ते आत्माना सम्यग् दर्शननी शुद्धता प्राप्त करे छे, सम्यग् दर्शननी शुद्धतांना बळे ज्ञान चारित्र तप वीर्य गुणना उल्लासने मगटावीने ते आत्माना शुद्ध ज्ञान दर्शन चारित्र गुणने पामीने तथा अष्ट कर्मनो क्षय करीने मुक्ति धाममां वसे के. प्रथम ज्ञान प्राप्त करीने पश्चात् पूजा वगेरेनी क्रिया करवी. गाडरीया प्रवाहनो त्याग करी प्रथम पूजाओनुं सारी रीते ज्ञान करं. विद्वान साधु गुरु अने दक्ष श्रावक पासेथी पूजाओना अर्थ धारवा. एवी रीते पूजाना गीतोद्वारा प्रभुनी पूजा करवाथी श्रावको मोक्षपदने पामे छे, त्यागी मुनियो प्रभुनी आगळ भावनाथी पूजाओ गाइ शके के पण द्रव्य पूजा करता नथी. कारण के तेओए द्रव्य पूजानो त्याग करेलो छे. पूजा भणावतां आत्मोल्लासथी अनेक कमैनी वर्गणाओनो क्षय थाय छे.
में यथाशक्ति पूजाओ रचवामां प्रयास कर्यो छे. समकित दृष्टिवाळा जीवो श्री कृष्णनी पेठे तेमांथी गुण सार ग्रहण करशे अने मिथ्यादृष्टियो काकनी पेठे दोषो जोशे, गुणानुरागी जे भक्तो हशे तेओ अवश्य फल प्राप्त करशे.
वसो गामना संघना आग्रह थी पहेली अष्ट प्रकारी पूजा रचवामां आवी हती अने त्यां प्रथम देरासरमां भणावी हती. वास्तुक पूजा विजापुरमां वकील, शा. रीखवदास अमुलेख, दोशी. नथुभाइ
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