Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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( २० ) श्री आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला के टीका सहित सप्ततिका को प्रमाण माना है और अन्त की दो गाथाएँ वर्ण्य विषय के बाद आई हैं, अतः उनकी गणना नहीं करने पर ग्रन्थ का नाम सप्ततिका सार्थक सिद्ध होता है। ग्रन्थकर्ता ___नवीन पाँच कर्मग्रन्थ और उनकी स्वोपज्ञ टीका के प्रणेता आचार्य श्रीमद् देवेन्द्रसूरि का विस्तृत परिचय प्रथम कर्मग्रन्थ की प्रस्तावना में दिया जा चुका है। अतः सप्ततिका के कर्ता के बारे में ही विचार करते हैं।
सप्ततिका के रचयिता कौन थे, उनके माता-पिता कौन थे, उनके दीक्षागुरु और विद्यागुरु कौन थे, अपने जीवन से किस भूमि को पवित्र बनाया था आदि प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के कोई साधन उपलब्ध नहीं हैं। इस समय सप्ततिका और उसकी जो टीकाएँ प्राप्त हैं, वे भी कर्ता के नाम आदि की जानकारी कराने में सहायता नहीं देती हैं।
सप्ततिका प्रकरण मूल की प्राचोन ताड़पत्रीय प्रति में चन्द्रर्षि महत्तर नाम से गर्भित निम्नलिखित गाथा देखने को मिलती है
गाहग्गं सयरीए चंदमहत्तरमयाणुसारीए ।
टीगाइ नियमियाणं एगणा होइ नउई उ । लेकिन यह गाथा भी चन्द्रषि महत्तर को सप्ततिका के रचयिता होने की साक्षी नहीं देती है । इस गाथा से इतना ही ज्ञात होता है कि चन्द्रर्षि महत्तर के मत का अनुसरण करने वाली टीका के आधार से सप्ततिका की गाथाएँ (७० के बदले बढ़कर) नवासी (८६) हुई हैं। इस गाथा में यही उल्लेख किया गया है कि सप्ततिका में गाथाओं की वृद्धि का कारण क्या है ? किन्तु कर्ता के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। आचार्य मलयांगरि ने भी अपनी टीका के आदि और अन्त में इसके बारे में कुछ भी संकेत नहीं किया है। इस प्रकार सप्ततिका के कर्ता के बारे में निश्चय रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
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