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TWIMorpawanpan
प्रकाशकीय
द्वितीय संस्करण कर्मग्रन्थ का भाग ३, सन् १९६५ में प्रकाशित हुआ था । इन पांच करों में ही भाग १, २. ३. की समस्त प्रति समाप्त हो गई तथा पाठकों की मांग निरन्तर पा रही है। पाठकों की रुचि के पुस्तक की पयोगिता देखकर समिति में भाग १, २ का पुनः मुद्रण गत कार्य किया था । अन्न भाग ३ व द्वितीय संस्करण पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है ।
इस संस्करण में प्रेस सम्बन्धी भूलों का प्रायः संशोधन कर लिया गया है, कहीं-कहीं संशोधन परिवर्धन भी किया है । बढ़ती हुई महागाई में बचा दुस्तक की लागत कोमल काफी बढ़ गई है, फिर भी हमने वही पुराना भूल्य ही
इम संस्करण के मत्रण में सम्पूर्ण अर्थ-साहयोग श्रीमान जालम चन्दजी बाफना (भोपालगढ़) ने उदारतापूर्वक प्रदान किया है । अप स्वयं भी सपा -बगिया और धर्मनिष्ट हैं । तत्त्वज्ञान में आपकी गहरी ४ है। आपका सम्पूर्ण परिवार बड़ा frक और सुसंस्कारी है । आपने संस्था के साहित्य में छि लेकर जो अनुदान दिया है. सदर्घ हार्दिक धन्यवाद !
विनील, मंत्री श्री मनधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति