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प्रकाशकीय [ प्रथम संस्करण ]
श्री
केसरी साहित्य प्रकाशन समिति के विभिन्न उद्देश्यों में एक प्रमुख एवं रचनात्मक उद्देश्य है जैन धर्म एवं दमन से सम्बंधित साहित्यका प्रकाशन करना । संस्था के मार्गदर्शक परमश्रद्धेय श्री मरूधर केसरीजी महाराज स्वयं एक महान विज्ञान, आशुकवि तथा जैन आगम तथा दमण के ममेश है और उन्हों के मार्गदर्शन में संस्था की विभिन्न नोकोपकारी प्रवृत्तियाँ चल रही हैं। गुरुदेवश्री साहित्य के मर्मज्ञ भी हैं, नुरागी भी हैं। उनकी प्रेरणा से ब -तक हमने प्रवचन, जीवनचरित्र, काव्य, आगम तथा गम्भीर विवेचनात्मक ग्रन्थों का प्रकाशन किया है। अब विद्वानों एवं craftary पाठकों के सामने हम उनका चिर प्रतीक्षित ग्रन्थ 'कर्मग्रन्थ विवेचन सहित प्रस्तुत कर रहे हैं।
कर्मग्रन्थ जैन दर्शन का एक महान ग्रंथ है। इसमें जैन तत्त्वज्ञान का सर्वांग विवेचन समाया हुआ है। पूज्य गुरुदेवश्री के निर्देशन में प्रसिद्ध लेखक-संपादक श्रीयुत श्रीचन्द की सुराना एवं उनके सहयोगी श्री देवकुमार जी जैन ने मिलकर इसका सुन्दर सम्पादन किया है । तपस्वीवर श्री रजतमुनि जी एवं विद्याविनोदी श्री सुकनमुनिजी की प्रेरणा से यह विराट कार्य समय पर सुन्दर जंग से सम्पन्न हो रहा है । इस ग्रन्थ का sxeneन श्रीमान् stria जी मोहनलालजी सेठिया मैसूर एवं श्रीमान् सेठ मेरुमल जी रोफा, सिकन्द्राबाद के अर्थ सौजन्य से किया जा रहा है। हम सभी विद्वानों, मुनिवरों एवं सहयोगी उदार गृहस्थों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हुए आशा करते हैं कि अतिशीघ्र क्रमण: अन्य भागों में हम सम्पूर्ण कम् विवेचन युक्त पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करेंगे। प्रथम व द्वितीय wor कुछ समय पूर्व ही पाठकों के हाथों में पहुँच चुके हैं। विद्वानों एवं arra ने उनका स्वागत किया है। अब यह तृतीय are पाठकों के मक्ष प्रस्तुत है ।
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विनीत, मन्त्री
श्री केसरी सहहित्य प्रकाशन समिति