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हमारे पास विद्यमान है । युद्ध जन्य कागज के अकालसे उसका प्रकाशन रुका पड़ा है। कविवर के हाथ की लिखी हुई पचासों प्रतियां हमने देखी है और कई प्रतियां हमारे संग्रह में भी विद्यमान है।
___ महोपाध्याय समयसुन्दरजी के कई ग्रन्थ अपूर्व एवं त्रुटित अवस्था में मिले हैं जिनका भी आगे उल्लेख किया गया है। जिस किसी सज्जन को उनकी पूर्ण प्रति कहीं उपलब्ध हो तो हमें सूचित करने की कृपा करें । उपाध्याय श्री सुखसागरजी महाराजने कविवर के ग्रंथों के प्रकाशन की और बड़ा अच्छा प्रयत्न किया है जिसके कारण १ कल्याणमन्दिर वृत्ति, २ गाथा सहस्त्री, ३ समाचारी शतक, ४ कल्पलता, ५ कालिकाचार्य कथा, ६ सप्त स्मरण वृत्ति ग्रंथ तो सं. १९८८ के बाद इधर कई वर्षों में प्रकाशित हो चुके हैं, इससे पूर्व ७ विशेष शतक कृत्ति, ८ जयतिहुअण वृत्ति, ९ दुरियर वृत्ति उन्होंने पहले प्रकाशित करवाये थे ये सभी अन्य श्री जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड सूरत से प्रकाशित हुए हैं । इस ग्रंथमाला के अतिरिक्त १० श्रावकाराधना ११ अष्टलक्षी, १२ प्रत्येकबुद्ध चौपई, १३ शत्रुञ्जय रास, १४ वस्तुपाल तेजपाल रास १५ दानादि चौढालिया १६ पुंजा ऋषिरास, १७ दशवैकालिक वृत्ति, १८ अल्पाबहुत्त्वस्तवन स्वोपज्ञ वृत्ति, १९ दुष्कालवर्णन छत्तीसी, २० चौवीसी, २१ पौषधविधि
१ हमने कुछ नवीन पद्य भी देसाईजी को भेजे थे जो जनयुग वर्ष ५, अंक ९-१० में प्रकाशित हुए ।