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१६४१ में श्री जिनसिंहसूरिजीने लवेरे में आपको उपाध्याय पद दिया । सं. १७०२ के चैत्र सुक्ला १३ ( वीरजन्मोत्सव ) के दिन स्वर्गवासी हुए। आपकी शिष्य सन्तति काफी विशाल थीं। एक प्राचीन पत्र में आपके शिष्यों की संख्या ४२ लिखी है जिन में वादी हर्षनंदन अच्छे विद्वान थे । उनके रचित १ उत्तराध्ययनवृत्ति, २ ऋषिमण्डलवृत्ति, ३ स्थानांग गाथागत वृत्ति, ४ मध्याह्न व्याख्यान पद्धति आदि उपलब्ध हैं । खेद है कि आपके सभी ग्रंथ अद्यावधि अप्रकाशित हैं ।
कविवरका संस्कृत साहित्यः
मौलिक
१ भावशतक सं० १६४१ ( प्रेस कॉपी हमारे संग्रह में ) २ अष्टलक्षी सं. १६४९ लाहोर (दे, ला. पु. फण्ड से प्रकाशित ) ३ चतुर्मासिक व्याख्यान सं. १६६५ अमरसर (हमारे संग्रह में ) ४ कालिकाचार्य कथा सं. १६६६ वीरसपुर ( कल्पसूत्र के
साथ जिनदत्तसूरि ज्ञान० में प्र. )
५ श्रावकाराधना सं. १६६७ मि. सु. १० उच्चनगर ( कोटा से प्रकाशित )
६ समाचारी शतक सं. १६६९ सिद्धपुर प्रारंभ, सं. १६७२ मेड़ता में समाप्ति (प्र. श्री जिनदत्तसूरि प्र. पु. फंड सूरत ) ७ विशेष शतक सं. १६७२ पौष दशमी मेड़ता ( प्र. श्री जिनदत्तसूरि प्रा. पु. फंड )