Book Title: Kalyan 1945 Ank 02
Author(s): Somchand D Shah
Publisher: Kalyan Prakashan Mandir

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Page 45
________________ ર૧૪ त्याधु: उस समय स्वर्गवास हुआ ? और कविवरके अपने निजी कटु अनुभवका एसा सुन्दर दिग्दर्शन है कि कवि की प्रतिभा के लिए स्वतः प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जाता। चंपकश्रेष्ठि चौपई एवं दुष्काल वर्णन छत्तीसीके अतिरिक्त उन्होंने विशेषशतक की लेखन प्रशस्ति के ६ श्लोकों में भी इस दुष्काल का उल्लेख किया है जो कि उपर्युक्त दुष्काल वर्णन छत्तीसीके साथ भी छपा है। श्री अभ्यासीजीने अपने लेखमें कविवर के रचित साहित्य पर भी उड़ती नजर फैकी है, अतः अब उस विषय में भी हमारी खोजका थोड़ा परिचय इस लेखमें दे देना आवश्यक होगा। हम सं० १९८५ से १७ वर्ष होने आये, कविवर समयसुन्दरजी के साहित्यका अनुसन्धान करते आ रहे हैं । जिसके फल स्वरूप कविवर की जीवनी एवं साहित्य (भाषा और संस्कृत) के सम्बन्ध में बहुत भी नवीन ज्ञातव्य उपलब्ध हुआ है। जीवनी के सम्बन्ध में सर्व प्रथम हमें २ गीत उपलब्ध हुए थे जिन्हे जैन युग वर्ष ५, अंक ९-१० में हमने प्रकाशित करवाये थे। उसके पश्चात् १ गीत और उपलब्ध हुआ जिसे उपर्युक्त दोनों गीतों के साथ हमने अपने सम्पादित ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित किया और अपने " युगप्रधान जिनचं. द्रसूरि ग्रंथ के पृ. १६७ में कविवर के साहित्य की सूची के साथ उनका संक्षिप्त परिचय भी दे दिया । कविवरका गीत, स्तवन, पद, सज्झायादि फुटकर साहित्य तो बहुत विशाल है, हमने उनका भी संग्रह किया तो ५०० के लगभग लघु कृतियों की प्रेस कॉपी

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