Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay Publisher: Vanki Jain Tirth View full book textPage 8
________________ ०००००००० 6००००००००००० 00000 VAAAAA ००००००००००० 3886000००० 00000 9000 2008 ००००० BOB0000 .... हो कर भी लौटना पड़ता है । दर्शन एवं वासक्षेप प्राप्त हो जाये तो भी अनेक व्यक्तियों को तृप्ति नहीं होती । ऐसे अनेक लोग पूज्यश्री के साथ वार्तालाप करना चाहते हैं, साधना के लिए मार्ग-दर्शन प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु समय की प्रतिकूलता के कारण पूज्यश्री इच्छा होते हुए भी समस्त मनुष्यों की समस्त अपेक्षाओं को सन्तुष्ट नहीं कर पाते । प्रवचन या वाचना श्रवण करने के लिए बैठनेवाले कई लोगों की भी शिकायत होती है कि पूज्यश्री की आवाज हमें सुनाई नहीं देती । जो व्यक्ति पूज्यश्री की वाणी का श्रवण करना चाहते हैं, फिर भी श्रवण नहीं कर सकते, उनके लिए यह प्रकाशन अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा विश्वास है । पूज्यश्री ने वांकी तीर्थ में वि. संवत् २०५५ के वर्षावास में १०९ साधु-साध्वीजीयों के समक्ष वाचना दी, उसका सार यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । अध्यात्मसार का आत्मानुभवाधिकार, पंचवस्तुक ग्रन्थ तथा अध्यात्मगीता पर दी गई वाचनाएं यद्यपि साधु-साध्वीजीयों के लिए दी गई थी, परन्तु श्रावक-श्राविकाओं को भी इन में से मार्ग-दर्शन प्राप्त होगा, ऐसी श्रद्धा है, ऐसा विश्वास है। पूज्यश्री के अन्तर में भगवान कैसे व्याप्त हैं, उसका ध्यान यह ग्रन्थ पढने पर होगा । प्रायः ऐसी कोई वाचना नहीं होगी जिसमें भगवान या भगवान की भक्ति की बात नहीं आई हो । किसी के प्रवचन में संस्कृति, किसी के प्रवचन में तप-त्याग, किसी के प्रवचन में 'सुख बुरा, दुःख उत्तम, मोक्ष प्राप्त करने योग्य 'इत्यादि बातें श्रवण करने को मिलती हैं, उस प्रकार पूज्यश्री के प्रवचनों में भक्ति की पराकाष्ठा सुनने को मिलती है । जिस प्रवचन में भक्ति की बात नहीं आये वह प्रवचन कलापूर्णसूरि का नहीं, ऐसा कहें तो भी असत्य नहीं है । ०००००००००००० ०००००००००००००००००००००० ००००००००००००० 000000००००००००००००००००००० ०००००००००6666666 ०००००००००००० 680666666666666Page Navigation
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