________________
है। इसका आदान-प्रदान हो सकता है। केवलज्ञान का आदानप्रदान नहीं हो सकता ।
* आगमों की सूची पक्खिसूत्र में बोलते हैं, वह मात्र बोलने के लिए है कि पढ़ने के लिए है ? गोचरी में केवल नाम गिन लें तो क्या चलेगा ?
* हमारी गति चींटी की है या पोपट की है ? प्रश्न - गति शुरु हो गई तो भी बडी बात है।
उत्तर - गति शुरु तो हो ही गई हैं । तो ही आपने दीक्षा अंगीकार की है। वैसे ही तो घर-संसार छोड़कर तो नहीं आ गये ।
* मुझे थकान नहीं आती । मैं भगवान का सेवक बनकर बोलता हूं । आप में से एक भी नहीं समझे तो भी मैं निराश नहीं होऊंगा, क्योंकि मैं तो लाभ में ही हूं । "ब्रुवतोऽनुग्रहबुद्धया वक्तुस्तु एकान्ततो हितम् ॥" अनुग्रह बुद्धि से बोलने वाले को एकान्त से लाभ ही है । ऐसा कहने वाले उमास्वाति महाराज का साथ
* हम यदि दिन में ३० मिनिट भी मन को संक्लेशरहित बना सकें तो वे ३० मिनिट भी मुक्ति मार्ग की ओर प्रयाण बन जायेंगी । रोज ऊंची-ऊंची सीढियों चढ़कर दादा की यात्रार्थ जाते हैं तो क्या इतनी साधना नहीं करेंगे ?
हम सिद्धि मांगते हैं, परन्तु साधना नहीं मांगते । साधना के बिना सिद्धि कैसे प्राप्त होगी ? तृप्ति मांगे पर यदि भोजन नहीं मांगे तो ? भोजन के बिना क्या तृप्ति होगी ?
* हमारे मन-वचन-काया की प्रवृत्ति कम से कम हमसे तो छिपी हुई नहीं है। हमारे स्वयं के लिए तो कम से कम हम सर्वज्ञ ही हैं । उसका समुचित निरीक्षण करते रहें और उसे दिशा प्रदान करते रहें तो भी काम हो जाये । आत्म-निरीक्षण एक दर्पण है, जिसमें स्वयं को देखना है ।
__ आगमों के द्वारा भी आत्म-निरीक्षण करना है, तो ही सच्ची दिशा दृष्टिगोचर होगी ।
कोई मान-सम्मान अधिक प्रदान करे तो फूल मत जाना । आत्म-निरीक्षण के इस दर्पण में आपके भीतर विद्यमान दाग देखते (कहे कलापूर्णसूरि - २wwwwwwwwwwww 60 १६३)