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इस प्रकार अनेक व्यक्ति सामायिक आदि क्रिया-काण्ड की हंसी उड़ाते हैं, परन्तु वे जानते नहीं कि ऐसे सामायिक भी धीरेधीरे आगे बढ़ाने वाले बन सकते हैं ।
प्रारम्भ में स्कूल जाने वाला बालक केवल एक की संख्या के स्थान पर टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें ही खींचता है। परन्तु ऐसा करतेकरते ही सही एक की संख्या लिखना सीख जाता है, यह न भूलें । अतः मेरा आप से अनुरोध है कि क्रिया-काण्ड की कदापि निन्दा न करें ।
साथ ही साथ यह भी कह दूं कि केवल द्रव्य क्रिया-काण्ड से सन्तुष्ट भी मत बन जाना ।
योग कर लिए । अधिकार मिल गया । आप यह न मान लें कि सूत्र पढ़ें बिना ही अधिकार मिल गया । भीतर से योग्यता उत्पन्न करने का प्रयत्न करें ।
* अभी ही हमें कोई कहे कि "यह धर्मशाला (उपाश्रय) खाली करो ।" तो हम कहां जायेंगे ? यह चिन्ता होती है न ?
उस प्रकार से कर्म-सत्ता आज ही कहे कि यह किराये का मकान, यह देह अभी ही खाली करो । तो हम कहां जायेंगे ? क्या कभी सोचा है ? किसी भी समय, किसी भी दिन कर्म सत्ता की आज्ञा आ जाये । “यह देह खाली करो, तो भी हमें सद्गति का विश्वास होना चाहिये । यहां से मर कर मैं सद्गति में ही जाऊंगा, चाहे जब मरूं, ऐसी प्रतीति करानेवाला हमारा जीवन होना चाहिये ।
* भगवान एवं गुरु का ज्यों ज्यों सम्मान बढ़ता जाये, त्यों-त्यों आत्म-गुण बढ़ते जाते हैं, आत्म-शक्ति खिलती जाती है । इतना विश्वास रख कर साधना में आगे बढ़ें ।।
यह सब कहना, सुनना या लिखना सरल है, परन्तु तदनुसार जीवन जीना अत्यन्त ही कठिन है । आप के लिए ही नहीं, मेरे लिए भी कठिन है ।
कषायों के आवेश के समय क्या करोगे ? कषाय आपको सिखायेंगे “अब मैं इसके साथ बोलूंगा नहीं । इसका कार्य नहीं करूंगा । इसके साथ कोई व्यवहार रखूगा नहीं।" परन्तु इन विचारो कहे कलापूर्णसूरि - २0mmonsoom ३७१)