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आचार्य पदवी प्रसंग, भद्रेश्वर - कच्छ, वि.सं. २०२९, माग. सु. ३
२८-६-२०००, बुधवार आषा. कृष्णा-११ : पालीताणा
* प्रभु के सम्मुख होंवे, उनकी आज्ञा का पालन करें, उनके नाम आदि का आलम्बन लें तो प्रभु की अपार कृपा-वृष्टि का अनुभव होगा ।
पानी पियें तो प्यास बुझे, भोजन करें तो तृप्ति का अनुभव हो, उस प्रकार प्रभु चित्त में आने पर प्रसन्नता की अनुभूति होती
सम्पूर्ण विश्व के प्राण, त्राण एवं सर्वस्व भगवान हैं । जंगल में मार्ग भूले आपको यदि मार्ग-दर्शक कोई मिल जाये तो आप उसका क्या उपकार मानेंगे ?
चलने की शक्ति तो पहले भी थी, परन्तु कहां जाना इसकी खबर नहीं थी।
जीवन रूपी जंगल में हम मार्ग भूले हुए हैं। ध्येय से च्युत हमें ध्येय बताने वाले, मार्ग बताने वाले भगवान हैं ।
गृहस्थ-जीवन में से साधु-जीवन में लाने वाले भगवान है । कभी ऐसा लगता है ?
वि. संवत् २०५५ में नवसारी में रत्नसुन्दरसूरिजी रात्रि में आकर कहे कलापूर्णसूरि - २ w S
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