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वाले भगवान हैं । गुण प्रदान करके भगवान जगत् पर सतत उपकार करते ही रहते हैं । इस कार्य में उन्हें कोई थकावट आती ही नहीं है । जो वस्तु आपके स्वभाव की बन जाये, शौक की बन जाये, उसमें क्या थकान लगती है ? बीड़ी पीने वाले को क्या बीड़ी पीते थकान लगती है ? क्या शराबी को शराब पीते थकावट लगती है ? वह उसका स्वभाव बन गया । उल्टा उसके बिना उसको चलता ही नहीं है ।
परोपकार प्रभु का स्वभाव बन गया । इसके बिना प्रभु को चलता ही नहीं । 'आकालमेते परार्थव्यसनिनः ।'
* शक्कर की मीठास दूध में आ सकती है, उस प्रकार से प्रभु के गुण हममें आ सकते हैं ।
इसके लिए ही तो प्रभु की भक्ति करनी है। दुष्ट की संगति करने से दुष्टता आती हो तो शिष्ट शिरोमणि प्रभु की संगति से शिष्टता क्यों न आये ?
कठिनाई यह है कि हमें दुष्ट की संगति प्रिय है, शिष्ट की संगति प्रिय नहीं है । संग तो प्रिय नहीं लगता परन्तु उनके गुणगान भी प्रिय नहीं लगते । ईर्ष्या से जलते हैं हम ।।
गुणी बनने का एक ही मंत्र है - गुणी के गुण-गान करने । जो गुण प्रिय लगें, वे आपको मिलेंगे ।।
___ गुण प्रिय है इसका तात्पर्य क्या ? कोई गुण प्रिय है अर्थात् हमारा हृदय चाहता है कि वह गुण मुझमें आये ।
आपको धनवान व्यक्ति प्रिय है, उसका अर्थ इतना ही है कि आपको स्वयं को धनवान बनना है। आपको सत्ताधीश प्रिय है, उसका अर्थ इतना ही है कि आपको स्वयं को सत्ताधीश बनना है। आपको कोई गुणी प्रिय है, इसका अर्थ इतना ही कि आपको गुणी बनना है । प्रिय लगना अर्थात् बनना । चित्त को जो प्रिय लगने लगता है, उसे वह तुरन्त ही अपनाने लगता है।
प्रभु के पास गुणों के ढेर हैं। जितने चाहिये उतने ले जाओ । कोई ब्याज नहीं देना पड़ेगा ।
__"गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या;
एक गुण देत मुझ शुं विमासो ?" (कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000 ४२५)