Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 556
________________ ऐसे प्रभु के कीर्तन आदि का फल बोधि एवं समाधि है, यह उत्तराध्ययन में कहा है ।। भगवान की भक्ति विशेष करके चार घाती कर्मों का नाश करती है। ऐसे भगवान के पास जाकर आप पन्द्रह मिनट में चैत्यवन्दन करके आ जाओ तो कैसे चलेगा ? ऐसे चैत्यवन्दन के समय भी आपका मन चंचल होता है या स्थिर ? पच्चक्खाण पारते समय 'जगचिन्तामणि' का चैत्यवन्दन बोलना होता है। आपको कितनी मिनट लगती हैं ? वापरने की (गौचरी की) अत्यन्त शीघ्रता होती है । यह 'जगचिन्तामणि' तो भावयात्रा का सूत्र है । जंगम एवं स्थावर तीर्थ की यात्रा में आप इस सूत्र को गाड़ी की तरह लुढ़काकर पूरा कर दें तो कैसे चलेगा ? ये सभी सूत्र तो गन्ने के समान हैं । इसे चबाओ तो रस मिलता है । परन्तु यहां चबाने का कष्ट ही कौन करे ? _ "सूत्र अक्षर परावर्तना, सरस शेलडी दाखी; तास रस अनुभव चाखिये, जिहां छे एक साखी ।" - उपा. यशोविजयजी म.सा. * सर्व प्रथम प्रभु को चाहो । (प्रीतियोग) फिर प्रभु को समर्पित हो जाओ । (भक्तियोग) फिर प्रभु की आज्ञा पालन करो । (वचनयोग) फिर प्रभु के साथ एकात्म हो जाओ । (असंगयोग) इतने में सम्पूर्ण मोक्ष-मार्ग आ गया । जब भी मोक्ष में जाना हो तब इसी मार्ग पर चलना पड़ेगा। * आज के दिन, एक वर्ष पूर्व हमारे समुदाय के वयोवृद्ध साध्वीजी लावण्यश्रीजी का कालधर्म हुआ था । वे अत्यन्त शिक्षित थीं । आणंदश्रीजी, चतुरश्रीजी, रतनश्रीजी आदि का जीवन पढ़कर आप उसमें से प्रेरणा लें, तो भी बहुत सीखने-जानने को मिलेगा । इन सब में भव-भीरुता थी । क्या आज है ? साध्वीजी भी शासन की सम्पत्ति हैं। यहां संख्या अधिक है अतः उपेक्षा करने योग्य है, यह न मानें । (५३६ 050mmonsoomowomans कहे कलापूर्णसूरि - २)

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