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जिसके जीवन में ये पांच समिति और तीन गुप्ति नहीं है, उसके जीवन में संयम कैसे हो सकता है ?
संयम की विशुद्धि कहां से प्राप्त करें ? अष्ट प्रवचन माता
से ।
माता ने पुत्र को जन्म दे दिया, परन्तु उसे संभालने वाला ही न हो तो ? शैशवावस्था में माता पुत्र को अन्न नहीं खिलाती, परन्तु स्तन-पान कराती है । बाहर का दूध भी नहीं पिलाती । हम सब माता की गोद खूंद कर आये हैं । जिसको माता के प्रति इतना प्रेम है, वह क्या माता की उपेक्षा करेगा ? यदि उपेक्षा करे तो क्या वह जगत् में प्रसिद्धि प्राप्त करेगा ? क्या उसका विकास होगा ?
तो फिर चारित्र रूपी रत्न प्रदान करने वाली माता को क्या हम भूल जायें ? हरिभद्रसूरिजी ने योग ग्रन्थों में कहा है कि आत्मसंप्रेक्षणा भी एक योग है । वचनों के अनुसार तत्त्वों का चिन्तन करना योग का प्रारम्भ है । गुरु भक्ति के प्रभाव से उन्होंने १४४४ ग्रन्थों की रचना की जो संघ का योगक्षेम करने वाले ग्रन्थ हैं । ऐसे महान् विद्वान की भी समिति - गुप्ति कैसी ? वे निश्चय एवं व्यवहार दोनों में पारंगत थे । उनकी प्रत्येक पंक्ति में निश्चय सापेक्ष व्यवहार है । व्यवहार की आराधना के बिना निश्चय नहीं मिलता । आई हुई आराधना उसके बिना नहीं टिकती । व्यवहार चारित्र की उपेक्षा करते हैं अतः आत्म-रमणता रूप निश्चय चारित्र हमें प्राप्त नहीं होता । ध्यान-समाधि की बातें कदाचित् न आयें, फिर चिन्ता न करें । समिति - गुप्ति की पालन बराबर करें तो उसमें भी ध्यान आदि आ ही जाते हैं ।
समिति प्रवृत्ति प्रधान हैं, जिसमें जयणापूर्वक की गई क्रिया मुख्य है । गुति निवृत्ति प्रधान है, यद्यपि गुप्ति प्रवृत्ति एवं निवृत्ति दोनों स्वरूप हैं ।
भाषा समिति का बराबर पालन किया तो वचन- गुप्ति आयेगी ही । उसके फल स्वरूप मनोगुप्ति भी आने वाली ही है । * गोचरी दोष लगा कर लाये तो प्रमाद आयेगा ही । एक आचार्य ने अपने विनीत - अप्रमादी शिष्य को दोपहर के कहे कलापूर्णसूरि २
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