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पूज्यश्री के केशर के पगलिये, वि.सं. २०३१, का.सु. १५
१७-६-२०००, शनिवार आषा. कृष्णा-१ : पालीताणा
* बकरे काटनेवाला 'कसाई' कहलाता है । कषाय करनेवाला भी 'कषायी' कहलाता है । दोनों में केवल नाम-साम्य ही नहीं, दूसरा भी साम्य है ।
कसाई की तरह कषाय करनेवाला भी स्व-पर के भावप्राणों की हत्या करता है । इस अपेक्षा से कसाई की अपेक्षा भी 'कषायी' खतरनाक है ।
द्रव्य-प्राण का मूल्य अधिक है या भाव-प्राण का ?
द्रव्य-प्राण की हत्या करने वाले को कसाई कहते हैं । भावप्राण के हत्यारे को हम क्या कहेंगे ?
* ऋषभदेव ने व्यवहार जगत् की (शिल्प, राज्य आदि की) व्यवस्था इसलिये की है कि उसके द्वारा सभ्य बना मानव धर्म के लिए योग्य बन सकता है ।
इस युग के ऐसे आद्य प्रवर्तक भगवान को भी कर्म नहीं छोड़ते तो हमें कौन छोडेगा ?
कषाय कर-कर के हम कर्म बांध रहे हैं, परन्तु हमें पता नहीं कि इसका विपाक कैसा आयेगा ? (कहे कलापूर्णसूरि - २Boooooooooooooo ३६१)