Book Title: Kadve Such Author(s): Suvandyasagar Publisher: Atmanandi Granthalaya View full book textPage 7
________________ सब यही कहते कि "शास्त्रों में ऐसा लिखा है यह बात आज तक हमे किसी भी साधु ने बताई ही नहीं । आज पहली बार पता चला की हम जिन बातों को धर्म समझ रहे थे, वे बाते दुर्गति करवाने वाली हैं। क्या उन साधुओं ने ये शाखा नहीं पड़े हैं?" यह सब देखकर बोरगांव (मंजू) के वर्षायोग (सन २००८) में सौ. नूतन अजमेरा, सौ. सारिका अजमेरा तथा अन्य श्रावकों ने भी कई बार इन आगम प्रमाणों को एकत्रित करके एक पुस्तक छपाने की इच्छा जताई । प्रारंभ में तो मैं उनसे असहमत था क्योंकि मुझे अपनी कोई पुस्तक छपवाने में रुचि नहीं थी । मैने कभी भी अपने फोटो तो क्या छोटा-सा स्टीकर या बैनर भी नहीं छपाया। यहाँ तक की वर्षायोग की पत्रिका भी कभी नहीं छपवाई। परन्तु दर्शनार्थियों की शंकाओं का समाधान करने के लिए जब भी मैं आगम प्रमाण दिखाता, सब लोग उनको एकत्रित करके पुस्तक छापने की भावना प्रकट करते थे। अन्तत: मुझे भी प्रतीत हुआ कि ऐसी पुस्तक छपने से शास्त्रों में बंद सचाईयाँ एवं विस्मृत होती जा रही मुनिचर्या पुन: जन-जन तक पहुँचेगी जिससे अज्ञान नष्ट होकर मुनिचर्या मे संबंधित अनेक भ्रान्तियाँ दूर हो सकती है तथा आगमानुकूल वर्तन करने के इच्छुक साधुओं को भी इससे लाभ होगा। तब मैने पुस्तक छपवाने के प्रति अपने विरोध का संकोच किया और वर्तमान के कुछ ज्वलन्त प्रश्नों से संबंधित कुछ आगम प्रमाण क्रमवार संकलित किये। कुछ जगह आवश्यक स्पष्टीकरण भी लिखे, परन्तु अधिकतर स्थानों में मूल शास्त्रों के उल्लेख उन्हीं शब्दों में ही रखे ताकि इस लघुग्रन्थ की प्रामाणिकता बनी रहे । शास्त्रों से उद्धृत परिच्छेदों में "आदि" शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिए उसउस स्थान पर कोष्टक () बनाये हैं ताकि मूल ग्रन्थों के प्रमाण भी यथावत् बने रहे और पाठकों को सही एवं विस्तृत अर्थ का ज्ञान भी हो। इन सब बातों के एकत्रित फल स्वरूप "कड़वे सच" का सृजन हुआ है। कड़वे सच .................... vi . "कड़वे सच' के सृजन का उद्देश्य किसी की निन्दा हो ऐसा नहीं है । जिस कारण से परम पवित्र मुनिमुद्रा की छवि धूमिल होकर मुनियों के प्रति समाज की श्रद्धा घटती जा रही है, वह कारण दूर होकर दिग्भ्रमित साधु और श्रावक दोनों भी सत्य को समझे तथा निर्ग्रन्थ मार्ग की पुन:प्रतिष्ठा हो इस मंगल भावना से इसका निर्माण हुआ है। इस कति का सजन किसी व्यक्ति के विरोध के लिए नहीं अपितु अपप्रवृत्ति के निराकरण के लिए हुवा है। मुझे विश्वास है कि यह कृति पढ़ने से साधुओं के प्रति श्रद्धा घटेगी नहीं अपितु शास्त्रोक्त आचरण करनेवाले साधुओं के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी। मेरे खराब हस्ताक्षर, अनुभवहीनता एवं अनियोजित कार्य के कारण इसकी प्रेस कॉपी बनाना अतिशय कठिन कार्य था । परन्तु श्री. संदीप एवं कु. बाली लोखंडे इन भाई-बहन की जोड़ी ने वह सफलता से पूर्ण किया तथा श्री ललितकुमार अजमेरा एवं परिवार की ओर से यह छपवाया गया । वर्षायोग समापन के बाद कुछ साधुओं से भेट हई। उनके कुतर्क सुनने पर कुछ और विषयों पर लिखने आवश्यकता प्रतीत हुई । इसलिए पूर्व संस्करण में कुछ परिवर्तन करते हुए मैने उसमें कुछ नवीन विषय भी जोड़े । इसके फल स्वरूप "कड़वे सच" का यह परिवर्धित संस्करण प्रकाशित हो रहा है। ग्रन्थ निर्मिति का कथन करने के बाद अब मैं अपने उन गुरुओं के उपकार स्मरण करता हूँ, जिनके कृपाप्रसाद से ही मैं इस योग्य बना हूँ मुझे मुनिदीक्षा प्रदान करनेवाले मेरे दीक्षा गुरु आचार्य श्री सुविधिसागर जी के उपकार मैं कभी नहीं चुका पाऊँगा । उन्होंने जिस प्रकार से मुझे उत्कृष्ट शिक्षा देकर एवं अपने ज्ञान तथा अनुभवों का विशाल भंडार मुझ पर लुटाकर मुझे उपकृत किया है, क्वचित् ही किसी शिष्य को ऐसा सौभाग्य मिला होगा । यह कृति- "कड़वे सच" उनके उस ऋण का एक छोटा-सा अंश मात्र है। कड़वे सच . ...... ....... .viiPage Navigation
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