Book Title: Kadve Such
Author(s): Suvandyasagar
Publisher: Atmanandi Granthalaya

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Page 67
________________ लगता है किन्तु पश्चात वह हितकर हो जाता है। इस बात को अनदेखा करके जो मुनियोंका विरोधी रहता है, उसका शास्त्रज्ञान भी विषके तुल्य है, क्योंकि वह संसारके दुःखोंका ही कारण है । (कार्तिकेयानुप्रेक्षा (टीका) - पृष्ठ ३५१) (पृष्ठ ६६) दिगम्बर मुनि यदि मन-वचन-काय एवं कृत-कारितअनुमोदना से रहित अर्थात् नवकोटि से रहित होकर 'निग्रंथों के लिए' बने हुए (समादेश) आहार को लेते हैं तो उनके लिए वह आहार 'निर्दोष आहार' है । (पृष्ठ ६८) ऐसे निर्दोष आहार को ही उहिष्ट रहित आहार कहते हैं। इससे हटकर उद्दिष्ट आहार इस शब्द का कुछ भी अर्थ नहीं है। (पृष्ठ ७६) तात्पर्य यही है कि जो मुनि अपरिग्रही हैं. शरीर से मोहरहित हैं. २८ मूलगुणों का उचित प्रकार से पालन करते हैं, उन पर निष्कारण शंका नहीं करके उनका यथोचित विनय करते हए प्रतिदिन यथाशक्ति आहारदान करना चाहिए। तभी तो पं. रतनचन्द भारिल्ल कहते हैं कि चार रोटियों के लिए (साधुओं की) परीक्षा नहीं करना चाहिए । (चलते फिरते सिद्धों से गुरु - पृष्ठ १४७) यदि किसी साधु में क्वचित् कोई दोष दिखता भी है तो उन्हें आगम के अनुसार विनययुक्त नम्र व मधुर शब्दों में समझाकर उसका उपगूहन करते हुए वात्सल्य से उनका स्थितिकरण करने का भी यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिए। यही सम्यग्दर्शन की पहचान, परीक्षा और सच्ची प्रभावना भी है । जो जिनदेव के इस उपदेश को स्वीकार करते हैं उस समय मुहर्तमात्र के लिए भले ही उन्हें वह उपदेश कटु सर्वाङ्गाजनिता तथा सदसि या यातः समानां ततिं कल्याणी मधुरा जगत्प्रियरमा स्रोतस्विनी ते सुगी । संख्यातीतसुरैर्नरैरपि तथा चित्रं! श्रुता प्राणिभिः सा सम्प्रत्यपि राति बुद्ध-सुविधेः हंसान् मतिं निर्मलाम् ।। ८. उपसंहार तर्क नहीं कुतर्क अपनी सुखलोलुपता का समर्थन करने के लिये कदाचित् कोई इन शास्त्रप्रमाणों को चतुर्थ काल की बाते कहकर वर्तमान में इनको अनुपयोगी कहेगा। परन्तु तर्कों के नकली सिक्के से सत्य की सम्पदा खरीदी नहीं जा सकती। जो तर्क आगमविरुद्ध होते हैं, वे वास्तव में तर्क नहीं कुतर्क हैं। जो समीचीन विषयमें कुतर्क कर विसंवाद उपस्थित करता है वह अल्पायुषी होता है, एवं परभवमें नरकादि दुर्गतिमें जाकर दुःख भोगता है। (दानशासनम्३/१०४, पृष्ठ ६२) आगम त्रिकाल सत्य है । आगम का अर्थ है - आ याने आप्त (भगवान्),ग याने गणधर और म याने मुनि । इसी क्रम से आये हए सिद्धान्त को आगम कहते हैं । (प्रज्ञा प्रवाह - पृष्ठ ४२) आगम, सिद्धान्त ये तो त्रैकालिक सत्य, शाश्वत हैं। इनको कोई मूर्ख ही बदलने की चेष्टा कर सकता है । सत्य को झुठलाने की कोशिश करोगे तो स्वयं झुठलाये जाओगे । सत्य को झूठ और झूठ को सत्य साबित करने के जितने प्रयास है वे सभी अनर्थक प्रयास है। (प्रज्ञा प्रवाह - पृष्ठ ३६-३७) यथार्थ आगमकथित बात को स्वीकार नहीं करना मान कषाय है। उपासक संस्कार से ... | शंका :-किस वक्ता के द्वारा दिया गया उपदेश श्रवण करना चाहिये ? समाधान :- पं. टोडरमलकृत मोक्षमार्गप्रकाशक में कहा है -जो जिनाज्ञा | मानने में सावधान है, उसे निग्रंथ सुगुरु के ही निकट धर्म सुनना | योग्य है, अथवा उन सुगुरुही के उपदेश को कहनेवाला उचित श्रद्धानी श्रावक हो तो उससे धर्म सुनना योग्य है। . कड़वे सच .... . . . . . . . . . . . . . ११७ -- ... कड़वे सच .......................... - ११८ -

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